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तीर्थ माला संग्रह चौकोण चिता-शेष श्रमण गरण के शरीर संस्कारार्थ बनवाई । और तीर्थंकर आदि के शरीर यथा स्थान चिताओं पर रखवा कर अग्नि कुमार देवों ने उन्हें अग्नि द्वारा सुलगाया, वायु कुमार देवों ने वायु द्वारा अग्नि को जोश दिया और चर्म मांस के जल जाने पर, मेघ कुमारों ने जल वृष्टि द्वारा चिताओं को ठण्डा किया। तब भगवान् के उपरि बायें जबड़े की शक्रन्द्र ने, दाहिनी तरफ की ईशानेन्द्र ने तथा निचले जबड़े की बांई तरफ की चमरेन्द्र ने और दाहिनी तरफ की दाढायें बलीन्द्र ने ग्रहण की। इन्द्रों के अतिरिक्त शेष देवों ने भगवान् के शरीर की अन्य अस्थिएं ग्रहण करलीं, तब वहां उपस्थित राजादि मनुष्य गणने तीर्थंकर तथा मुनियों के शरीर दहन स्थानों की भस्मी को भी पवित्र जान कर ग्रहण कर लिया। चिताओं के स्थान पर देवों ने तीन स्तूप बनवाये और भरत चक्रवर्ती ने चौबीस तीर्थङ्करों की वर्ण मानोपेत सपरिकर मूर्ति स्थापित करने योग्य जिन गृह बनवाये उस समय जिन मनुष्यों को चिताओं से अस्थि, भस्मादि नहीं मिला था उन्होंने उसकी प्राप्ति के लिए देवों से बड़ी नम्रता के साथ याचना की जिससे इस अवसपिणी काल में याचक शब्द प्रचलित हुआ । चिता कुण्डों में अग्नि चयन करने के कारण तीन कुण्डों में अग्नि स्थापन करने का प्रचार चला, और वैसा करने वाले 'आहिताग्नि' कहलाये ।
उपर्युक्त सूत्रोक्त वर्णन के अतिरिक्त भी अष्टापद तीर्थ से सम्बन्ध रखने वाले अनेक वृत्तान्त सूत्रों चरित्रों तथा (पौराणिक प्रकीर्णक) जैन ग्रन्थों में मिलते हैं, परन्तु उन सबके वर्णनों द्वारा विषय को बढ़ाना नहीं चाहते । (२) उज्जयन्त ___ उज्जयन्त यह गिरनार पर्वतका प्राचीन नाम है, इसका दूसरा प्राचीन नाम रैवतक पर्वत भी कहते हैं "गिरनार" यह इसका तीसरा पौराणिक नाम है जो कल्पों, कथाओं आदि में मिलता है ।
उज्जयन्त तीर्थ का नाम निर्देश प्राचाराङ्ग नियुक्ति में किया गया है, जो ऊपर बता पाये हैं, इसके अतिरिक्त कल्पसूत्र (दशाश्रुत स्कन्ध अष्टमाध्ययन) आवश्यक सूत्र आदि में भी इसके उल्लेख मिलते हैं। कल्पसूत्र में इस पर भगवान 'नेमिनाथ' के
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