SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थ माला संग्रह १०३ वीस कोस पिराग तिहांथी, सीधउ अण्णिन पुत्र जिहां थी। प्रगटयु तीर्थ तिहां थी तु जयु ॥२६॥ ढाल त्रीजी गउडोनीजिहां बहुलउ मिथ्यात लोक मकरि नाहइं, कुगुरु प्रवाहइं पांतरचा ए। गंगा यमुना संगि अंग पखालइ ए, अंतरंग मल नवि टलि ए ॥२७॥ अरकय वडनि हेठि जिन परिणठांमि, यू हिरइ भगवंत पादुका ए। संवत सोल अडयाल, लाड मिथ्यातीय, रायकल्यारण कुबुद्धिउ ए ॥२८॥ तिणि कीधउ अन्याय, शिवलिंग थापी, उथापी जिन पादुका ए। कोस ब्यालीस सुपास, पास जनम भूमि, काशी देश वणारसी ए ॥२६॥ गंगातटि त्रिणि चैत्य, वलि जिण पादुका, पूजी अगर उषेवीइ ए। दीसे नगर मझारि, पगि पगि जिन प्रतिमा, ज्ञान नहीं शिवलिंगनू ए ॥३०॥ एक वदि वेदांत, अवर सहू मिथ्याति हरिहर, भजन भलु करुरे ए। एक वडा अवधूत, लंब जटाजूट त्रीकमसु ताली दिइ ए ॥३१॥ कासी वासी कागमुग्रो मुगति लहइ मगधि मूओ नर खर हुइ ए । तीरथ वासो एम, असमंजस भाषइ, जैन तणा निंदक घणा ए ॥३२।। जोउ कलियुग जोर समकित पर्याय, इणि पुरि वसतां सही घटि ए। हरिपुरि हरिचंदराय वाचा पालवा, पांणह घरि पाणी वहि ए ।।३३।। गंगातटि द्रूहेठि, सीहपुरि त्रिणि कोस, जनम श्री श्रेयांसनउ ए । नवु जीर्ण दोय चैत्य प्रतिमा पादुका, सेवई सीहसमी पंथि ए ॥३४।। ज्ञान नहीं इगि पनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003209
Book TitleTirth Mala Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherParshwawadi Ahor
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy