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________________ meenama सूरीश्वर और सम्राट् । 'यात्रा' के नामसे जो कर वसूल किया जाता था, उसको उसने राज्यकी लगाम अपने हाथमें लेनेके बाद आठवें वर्षमें बंद कर दिया था। यह भी उसकी दयालु वृत्तिका ही परिणाम था । नववे वर्षमें उसने 'जज़िया' के नामसे जो कर वसूल किया जाता था उसे भी बंद कर दिया था । (ई. स. १५६२ ) इन दोनों करोंसे पहिले प्रजाको बहुत ही ज्यादा कष्ट उठाना पड़ा था। इस 'जज़िया' की उत्पत्ति भारतमें कबसे हुई ? इसका यद्यपि निश्चित समय निर्धारित नहीं किया जा सकता है तथापि उसके विषयमें प्रथम प्रकरणमें कुछ प्रकाश डाला जा चुका है । प्रसिद्ध इतिहास लेखक विन्सेंट स्मिथके मतानुसार फीरोजशाहने यह कर लगाया था और अकबरके समय तक चलता रहा था । ऐसा कर जिसकी आमदनी लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ों रुपयेकी होती थी उसने केवल अपनी दयापूर्ण वृत्तिसे, प्रजाके हितार्थ बंद कर दिया, इससे हमको सहन ही में यह बात मालूम हो जाती है कि, अकबर मुसलमान बादशाह होकर भी अपनी प्रनाकी भलाईका कितना खयाल रखता था । जिस आर्यप्रजाको मुसलमानी राज्यमें भी ऐसे जुल्मी करोंसे दूर रहने का सौभाग्य प्राप्त था उसीको आज आर्य राजाओंके अधिकारमें रहते हुए भी भिन्न भिन्न प्रकारके अनेक कठोर कर देने पड़ते हैं और अनेक प्रकारके कष्ट उठाने पड़ते हैं, यह वात क्या किसीसे छिपी हुई है ? इस समय हमें केप्टेंन एलेक्झेण्डर हेमिल्टनका-जो स्काटलेण्डका रहनेवाला था और जो सन् १६८८ से १७२३ ईस्वी तक हिन्दुस्थानमें व्यापार करता रहा था-वचन याद आता है । वह कहता है: "स्वराज्यकी अपेक्षा मुगलोंके राज्यमें रहना हिन्दुलोगोंको ज्यादा अच्छा लगता था । कारण-मुगलोंने लोगों पर करका बोझा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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