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________________ सम्राट्-परिचय. सन् १९६२ ईस्वीमें, यानी जब वह बीस बरसका हुआ, तब प्रजाकी असली हालत जाननेके लिए उसने फकीरों और साधुसन्तोंका सहवास करना शुरु किया । यह है भी ठीक कि, निष्पक्ष त्यागी फकीरों और साधुओंके जरिए प्रनाकी असली हालत अच्छी तरहसे मालूम हो सकती है। वर्तमानमें तो प्रायः राजा लोग साधु-फकीरोंसे मिलनेमें भी पाप समझते हैं । अस्तु । साधु-फकीरोंसे मिलनेमें अकबरको इतना आनंद होता था कि, वह कई वार तो वेष बदल बदल कर उनसे मिलता था। साधुओंसे मिल कर जैसे वह प्रनाकी असली हालत जाननेकी कोशिश करता था वैसे ही वह आत्माकी उन्नतिके साधनोंका भी अन्वेषण करता था । अकबरने कहा है कि:“On the completion of my twentieth year," he said, " I experienced an internal bitterness, and from the lack of spiritual provision for my last journey my soul was seized with exceeding sorrow. "* भावार्थ----जब मैं बीस बरसका हुआ तब मेरे अंतःकरणमें उग्र शोकका अनुभव हुआ था । और मुझे इस बातका बड़ा दुःख हुआ था कि, मैंने परलोक यात्राके लिए ( धर्मकृत्य नहीं किये ) धार्मिक जीवन नहीं बिताया। अकवरको तब तकके अनुभवसे यह भी मालूम हुआ था कि, जिन जिन पर उसने विश्वास किया था के सभी विश्वास करने लायक नहीं थे। उनमेंके काइयों ने तो अकबरको मार डालने तकका भी प्रयत्न किया था। ___ तब तक अकबरकी आयकी भी अव्यवस्था ही थी। अकबरको जब यह बात मालूम हुई तब उसने सूरवंशीय राज्यके एक वफादार * Aiu i Albari, Vol. IIT, L. 336 by 11. S. Jarrell: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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