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________________ सम्राट्-परिचय. कर रहा था और जिसका हम इस प्रकरणमें परिचय कराना चाहते हैं, वह सम्राट् यही बदरुद्दीन महम्मद अकबर है। यही 'सम्राट अकबर' के नामसे संसारमें प्रसिद्ध हुआ है । हम भी इस सम्राटको 'सम्राट अकबर' के नामहीसे पहिचानेंगे । जिस समय अकबरका जन्म हुआ था उस समय उसका पिता हुमायूँ अमरकोटसे २० माइल दूर एक तालाबके किनारे डेरा डाल कर ठहरा हुआ था । तरादीबेगखाँ नामके एक मनुष्यने उसे पुत्र जन्मकी बधाई दी। बधाई सुन कर हुमायुको अत्यंत आनंद हुआ। व्यावहारिक नियम सबको-चाहे वह राजा हो या रंकअपनी अपनी शक्तिके अनुसार पालने ही पड़ते हैं। पुत्र-प्राप्तिकी प्रसनतामें हर तरहसे उत्सव करना उस समय हुमायूँ अपना कर्तव्य समझता था। मगर कहावत है कि,- वसु विना नर पशु, उस पर भी हुमायुका जंगलमें निवास ! वह क्या कर सकता था ? उसके पास क्या था जिससे वह अपने मनोरथको पूर्ण करता ! पुत्र-प्राप्तिके आनंददायक अवसर पर भी उपर्युक्त कारणोंसे उसके मुख कमल पर कुछ उदासीनताकी रेखा फूट उठी । उसके अंगरक्षक जौहर नामक व्यक्तिने इस रेखाका कारण जाना । उसने तत्काल ही एक कस्तूरीका नाफ-जिसको उसने कई दिनोंसे सँभालके रक्खा थाहुमायुंके सामने ला रक्खा । हुमायुं बड़ा प्रसन्न हुआ । एक मिट्टीके बर्तनमें उसका चूरा किया और फिर वह चूरा सबको बाँटते हुए उसने कहा:-" मुझे खेद है कि, इस समय मेरे पास कुछ भी नहीं है इस लिए मैं पुत्र-जन्मकी खुशीके प्रसंगमें आप लोगोंको, इस कस्तूरीकी खुश्बूके सिवा और कुछ भी भेट नहीं कर सकता हूँ। आशा है आप इसीसे सन्तुष्ट होंगे । मुझे यह भी उम्मीद है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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