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सूरि-परिचय।
कहा । खानने सूरिजीको पकड़ लानेके लिए सिपाहियोंको हुक्म दिया। जौहरीबाड़ेमें आ कर सिपाहियोंने सूरिजीको पकड़ा । जब वे सूरिजीको पकड़ कर ले जाने लगे तब राघव नामका गंधर्व और श्रीसोमसागर बीचमें पड़े । अन्तमें उन्होंने सूरिजीको छुड़ाया। इस बैंचाळेचीमें गंधर्व राघवके हाथमें चोट भी लग गई। सूरिनी नंगे शरीर ही वहाँसे भगे । इस आफतसे भागते हुए देवजी नामके लौंकाने उन्हें आश्रय दिया था । और वे उसीके यहाँ रहे थे।
उधर पकड़नेवाले नौकर चिलाते हुए कचहरीमें गये और कहने लगे कि,--" हमको मुकों ही मुक्कोंसे मारा और हीरजी भग गया । वह तो कचहरीको भी नहीं मानता है।" यह सुन कर खान विशेष कुपित हुआ। उसने सूरिजीको पकड़नेके लिए बहुतसे सिपाही दौड़ाये। चारों तरफ हा हुल्लड मच गया। घरोंके दर्वाजे बंद हो गये। खोजतेखोजते, सूरिजी तो न मिले मगर धर्मसागरजी और श्रुतसागरजी नामके दो साधु उनके हाथ आ गये। सिपाहियोंने पहिले उन दोनोंकों खूब पीटा और फिर उन्हें हीरविजयसूरि न समझ छोड़ दिया। कोतवाल और सिपाही लोग सूरिजीके न मिलनेसे वापिस निराश हो कर लौट गये । उनको पकड़नेकी गड़बड़ बहुत दिनों तक रही थी । उस गड़बड़के मिट जानेके बाद ही हीरविजयसूरि शान्ति के साथ विहार करने लगे थे। ___ उपर्युक्त उपद्रवोंसे हम सहज ही में समझ सकते हैं कि, उस समयके अधिकारी कहाँ तक न्याय और कानूनका पालन करते थे। जिन बातोंको एक सामान्य बुद्धिका मनुष्य भी न माने उन बातोंको भी सत्य मान कर एक महान् धर्मगुरुको पकड़नेके लिए शिकारी कुत्तोंकी तरह पुलिस और घुड़सवारोंको चारों दिशाओंमें दौड़ा देना, उस समयकी अराजकता या दूसरे शब्दोंमें कहें तो उस समयके हाकिमोंकी
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