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सूरीश्वर और सम्राट् ।
गये । लड़का दिन बदिन अच्छा होने लगा । कुछ दिनमें तो वह सर्वथा अच्छा हो गया । जब छोकरा आठ वरसका हुआ तब सूरिजी विहार करते हुए पुनः खंभात गये । उन्होंने लड़का माँगा । इससे रत्नपाल और उसका परिवार आचार्य महाराजसे नाराज हो कर झगड़ा करने लगे । सूरिजीने मौन धारण किया, और फिर से उसका जिक्र नहीं किया ।
रामजीके अजा नामकी एक बहिन थी । उसके सुसरेका नाम हरदास था । हरदासने अपनी पतोहूकी प्रेरणासे उस समयके खंभातके हाकिम शिताबखाँके पास जा कर कहाः " आठ वर्षके बालकको हीरविजयसूरि साधु बना देना चाहता है, इसलिए उसे रोकना चाहिए । " कानके कच्चे सूबेदार ने तत्काल ही हीर विजयसूरि और उनके साथ साधुओंको पकड़ने के लिए वारंट जारी कर दिया । इस खबरको सुन कर सूरिजीको एक एकान्त स्थानमें छिप जाना पड़ा । हीरविजयसूरि तो नहीं मिले मगर रत्नपाल और रामजी शिताबखाँ के पास पहुँचाये गये । छोकरेका रूप देख कर शिताबखाँने रत्नपालसे कहाः-- " क्यों बे 1 तू इसको साधु किस लिए बनाता है ? यह बच्चा फकीरी क्या समझे ? याद रख, अगर तू इसको साधु बनायगा तो मैं तुझको जिंदा नहीं छोडूंगा । "
शिताबखाँके कोपयुक्त वचन सुन कर रत्नपाल घबरा गया और बोला:- " मैं न तो इसे साधु बनाता हूँ और न आगे बनाऊँहीगा ।
१ शिताबखाँका असली नाम सैयद इसहाक है । शिताबखाँ जानने की यह उसका उपनाम या पदवी है इसके संबंध में जिनको विशेष इच्छा हो वे ' अकबरनामा प्रथम भाग अंग्रेजी अनुवादका - जो रिजका किया हुआ है - पु. ३१९ वाँ देखें ।
बेव
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