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________________ २६ सूरीश्वर और सम्राट्। ___आचार्य होनेके बाद जब वे पाटन गये थे तब वहाँ उनका 'पाटमहोत्सव' हुआ था। पाट-महोत्सवके समय वहाँके सूबेदार शेरखाँके मंत्री भणसाली समरथने अतुल धन खर्चा था। शट-महोत्सवके समय एक खास जानने योग्य क्रिया होती है । वह यह है कि, जब आचार्य नवीन पाटधरको पाट पर बिठाते हैं जब स्वयं आचार्य पहिले पाटधरको विधिपूर्वक वंदना करते हैं, फिर संघ वंदना करता है। ऐसा करनेमें एक खास महत्त्व है । पाट पर स्थापन करनेवाले आचार्य स्वयं वंदना करके यह बात बता देते हैं कि, नवीन गच्छपतिको-पाटघरको मैं मानता हूँ। तुम सब ( संघ ) भी उन्हें मानना । आचार्यके ऐसा करनेसे पाट पर बैठनेवाले साधुको, जो साधु उससे दीक्षामें बड़े होते हैं उनके मनमें, वंदना करनेमें यदि संकोच होता है तो वह भी मिट जाता है। इमसे किसीको यह नहीं समझना चाहिए कि-नवीन पाटधरको आचार्य हमेशा ही वंदना करते रहते हैं । वे केवल पाट पर बिठाते समय ही वंदना करते हैं । पश्चात् तो नियमानुकूल शिष्य ही आचायको वंदना करते हैं। आचार्यपदवीको प्राप्त होनेके बारह बरस बाद उनके गुरु श्रीविजयदानसूरिका संवत् १६२२ (ई० स० १५६६) के वैशाख सुदी १२ के दिन वड़ावलीमें स्वर्गवास हुआ । इससे उन्हें भट्टारककी पदवी मिली। उन्होंने समस्त संघका भार अच्छी तरह उठा लिया। तत्पश्चात् वे देश भरमें विचरण करने लगे। प्रथम प्रकरणमें हम यह बता चुके हैं कि, विक्रमकी सोलहवीं शताब्दिमें सारे भारतमें और खास करके गुजरातमें अराजकता फैल रही १ यह शेरखा दुसर अहमदशाहके समयमें पाटनका सूबेदार था। जो इसके विषयमें विशेष जानना चाहते हैं वे मीराते-सिकंदरी देखें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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