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________________ १८ सूरीश्वर और सम्राट् । उठाते थे । वे साधुओंकी शिथिलता और झगड़ोको दिखा कर लोगोंको अपने अनुयायी बनाते थे। उन मत-प्रवर्तकोंमेंसे हम यहाँ पर 'लौका'का उदाहरण देते हैं । उसने इस स्थितिका लाभ उठा कर अपने मतको बड़े जोरोंके साथ आगे बढ़ाया । जिन देशोंमें शुद्ध साधु नहीं जा सकते थे उन देशोंमें उसने जा कर हजारों लोगोंके दिलोंको पलटा, उन्हें मूर्तिपूनासे हटाया और अपने मतका अनुयायी बनाया। इतना ही क्यों? सैकड़ों जगह तो-जहाँ एक भी मूर्तिपूजक नहीं रहा-उसने मंदिरोंमें कोटे लगवा दिये । यह साधुओंकी शिथिलता और आपसी द्वेषहीका परिणाम था। यद्यपि साधुओं और श्रावकोंकी ऐसी भयंकर स्थिति हो गई थी, तथापि पवित्रताका सर्वथा लोप नहीं हुआ था । उस समयमें भी ऐसे ऐसे त्यागी और आत्मश्रेयमें लीन रहने वाले साधु महात्मा मौजूद थे कि, जो वैसे जहरीले संयोगोंमें भी अपने साधुधर्मकी भली प्रकारसे रक्षा कर सके थे। इतना ही क्यों, कई शासनप्रेमी ऐसे मी थे कि, जिनको वैसी भयंकर स्थिति देख कर दुःख होता था। तीव्र प्रवाहके सामने जानेका साहस करना सर्वथा असंभव नहीं तो भी भयानक जरूर है । मगर उस भयानक दशामें भी एक महात्मा क्रियाका उद्धार करनेके लिए आगे आये थे। उनका नाम था 'आनंदविमलमूरि' । क्रियोद्धार करनेमें उन्होंने बहुत बड़ा पुरुषार्थ किया था। कहा जाता है कि, उन्हें इस महान धर्ममें यद्यपि जितने चाहिए उतने और जैसे चाहिए वैसे सहायक-साधन नहीं मिले थे, तथापि उन्होंने अपने ही पुरुषार्थसे उस समयकी स्थितिमें बहुत बड़ा परिवर्तन कर दिया था । वे समयानुसार साधुधर्मके समस्त नियमोंको उचित रूपसे पालते थे, किसी श्रावक या श्राविकाके प्रति ममता नहीं रखते थे; सबको समान रूपसे उपदेश देते थे; सबको समान दृष्टिसे देखते थे, निःस्पृहताके साथ विचरण करते थे, निःस्वार्थ भावसे उपदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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