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________________ ३८० सूरीश्वर और सम्राट् । शोध पर नजर रख ( हुन छुनादि ) - इनके मंदिरोंमें या उपाश्रयों में कोई न ठहरे एवं कोई कर भी न करे । अगर ये जीर्ण होते हों और इनके नागदेवाली, चाहनेवालों, या खैरात करने वालों में से कोई इन्हें सुधारे या इनकी नींव डाले तो कोई भी व्यज्ञानवाला या धर्माध उसे न रोके । और जैसे खुदाको नहीं पहचाननेवाले, बारिशको रोकने या ऐसे ही दूसरे काम - जो पूज्यजातके ( ईश्वर के ) काम हैं - करनेका दोष, सूर्खता और बेवकूफीके सत्र, उन्हें जादूके काम समझ, उन बेचारे खुदा के माननेवालोंपर लगाते हैं और उन्हें अनेक प्रकारके दुःख देते हैं तथा वे जो क्रियाएँ करते हैं उनमें बाधा डालते हैं । ऐसे कामोंका दोष इन बेचारोंपर नहीं लगाकर इन्हें अपनी जगह और कानपर खुशी के साथ भक्तिका काम करने देना चाहिए, एवं अपने धर्मके अनुसार उन्हें धार्मिक क्रियाएँ करने देना चाहिए । " 1 इससे (उस) श्रेष्ठ फर्मान के अनुसार अमल कर ऐसी ताकीद करनी चाहिए कि, बहुत ही अच्छी तरहसे इस फर्मानका अमल हो और इसके विरुद्ध कोई लावे | ( हरेकको चाहिए कि ) वह अपना फर्ज समझकर फर्मान की उपेक्षा न करे;- उसके विरुद्ध कोई काम न करे | ता० १ शहर महीना, इलाही सन् ४६, मुताबिक़ ता० २५, महीना सफर, सन् २०१० हिज्री । पेनका वर्णन | फरदीनदिने सूर्य एक राशी दूसरी राशीमें हिरवा वे दिन कि में आते ही रमन महीने के सोमवार; जाता है ये दिन जो दो सूफियाना दिनांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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