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________________ सम्राटका शेष जीवन। अकबरको प्रसन्न करता और उसकी सारी चिन्ताओंको दूर कर देता। वह मी ई. सन् १९८६ में जैनखाँके साथ पहाड़ी लोगोंको परास्त करने गया था और वहीं मारा गया था। अकवर विशेष घबराने लगा और सोचने लगा कि, मेरा अब क्या होगा ? __कहावत है कि,-' अंत मुखी तो सदा सुखी । अन्तिम समयमें सुखके साधन मिलने बहुत ही कठिन हैं। अकबरके समान सम्राटके ऊपर अन्त समयमें जो दुःख पड़े उनका वर्णन जब पढ़ते हैं तब हृदयसे यह प्रार्थना निकले बिना नहीं रहती कि,-प्रभो । हमारे शत्रुको भी कभी ऐसा दुःख न हो। जिस सम्राटके वहाँ किसी बातकी कमी न थी; जिस सम्राटके लिए दुःखकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, उसी सम्राटकी यह दशा ! जैसे जैसे अकबरकी अन्तिम अवस्था निकट आती गई, वैसे ही वैसे उसके सिरपर विपत्तियों के बादल भी सघन होने लगे। मानसिक दुश्चिन्ताओंसे उसका मन व्याकुल रहने लगा। उसके सलाहकार, सहायक सब चल बसे थे, तीन पुत्रोंमेंसे एक,-मुराद शराबमें ही डूबा रहकर मर चुका था; दूसरा दानियाल भी उसे कलंकित करनेवाला ही था । वह इतना शराबी और व्यभिचारी हो गया था कि, लोग उससे घबरा उठे थे। उसको सुधारनेका सम्राट्ने बहुत प्रयत्न कियायहाँ तक की उसको शराब पीलाने वालेके लिए प्राणदंडकी आज्ञाका हुक्मनामा जारी किया तो भी उसका शराब पीना बंद न हुआ । वह अपनी 'मृत्यु' नामकी बंदूकमें शराब मँगवा मँगवाकर पीने लगा। आखिर इसीमें उसके प्राण पखेरू उड़ गये । तीसरा सलीम ही रह गया । अकबरका उत्तराधिकारी अब केवल सलीम ही रह गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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