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________________ ३६२ सूरीश्वर और सम्राट् । शायद पुत्रकी मृत्युसे भी न होता । कई दिनों तक वह न किसीसे मिला और न उसने कोई राज्यका कामकाज ही किया। वह केवल बंधु-वियोगके दुःखमें निमग्न रहा। दूसरी तरफ जिन मुसलमानोंने सलीमको ये समाचार दिये थे कि, अबुल्फजल आगरे आ रहा है उन्हें यह भय लगा की सम्राटको यदि इस बातकी खबर हो जायगी तो वह हमारी जिन्दा चामड़ी खिंचवा लेगा; इससे उन्होंने यह प्रसिद्ध किया कि सलीमने राज्यके लोभसे अबुल्फ़ज़लको मरवा डाला है। सम्राट्ने यह बात सुनी एक दीर्घ निःश्वास डाली और कहा:-" हाय सलीम! तूने यह १. क्या किया ? यदि तू सम्राट् होना चाहता है तो मुझे न मारकर अबुल्फ़ज़लको क्यों मारा ?" अस्तु, सम्राट्ने सलीमको राज्यगद्दी नहीं देनेका निश्चय किया, और अबुल्फज़लके पुत्रको तथा राजा राजसिंह और १ राजा राजसिंह राजा आसकरण कछवाहका पुत्र था । राजा आसकरण राजा बिहारीमलका भाई था । राजसिंहको उसके पिताकी मृत्युके बाद 'राजा' की पदवी मिली थी । उसने बहुत बरस तक दक्षिणमें नौकरी की थी । राज्यके ४४ वे बरसमें वह दर्बारमें बुलाया गया था। दर्बारमें आते ही वह गवालियरका सूबेदार बनाया गया था। राज्यके ४५ वें बरसमें अर्थात् ई. सन् १६०० में वह शाही सेनामें शामिल हुआ था । यह वह सेना थी कि जिसने 'आसीर' के किलेपर आक्रमण किया था। वीरसिंहके साथ युद्ध करनेमें उसने अच्छी वीरता दिखलाई थी, इसलिए ई. सन् १६०५ में वह चार हजारी बनाया गया था । जहाँगीर (सलीम ) के राज्यके तीसरे बरसमें उसने दक्षिणमें कार्य किया था । वहीं ई. सन् १६१५ में उसकी मृत्यु हुई थी । विशेषके लिए देखो 'आइन-ई-अकबरी' के पहले भागका अंग्रेजी अनुवाद पृ० ४५८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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