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सम्राट्का शेष जीवन ।
जस्म लगे तो भी वह लड़ता रहा । अन्तमें पीछेसे एक सवारने आकर उसकी पीठमें भाला मारा । भाला पीठ फोड़कर आगे निकल आया । अबुल्फ़ज़ल घोड़ेसे गिर पड़ा। एक दूसरे आदमीने आकर उसका शिर काट डाला। ई. सन् १६०२ के अगस्तकी १२ वीं तारीखके दिन उसकी मृत्यु हुई। यह है शत्रुताका परिणाम !
बस अकबरका बचा हुआ एक अनुयायी, सच्चा सलाहकार संसारसे चल बसा । उदार मुसलमानोंने सच्चा तत्त्वज्ञानी खोया और हिन्दुओंने अपना वास्तविक विधर्मी प्रशंसक गुमाया। निस समय अबुल्फ़ज़लका मस्तक हाथमे लेकर सलीम प्रसन्न हो रहा था उस समय अकबरके समस्त राज्यमें शोक छा रहा था।
अबुल्फजल मारा गया मगर उसकी मृत्युके समाचार अकबरके पास लेकर कौन जाय ! सम्राट् जिसको प्राणोंसे भी अधिक प्रिय समझता था और हृदयसे जिसपर श्रद्धा रखता था उसीकी मृत्युके समाचार सम्राटके पास पहुँचानेकी हिम्मत कौन करे ? अन्तमें सदाकी रीतिके अनुसार अबुल्फ़ज़लका वकील काले रंगका कपड़ा कमरमें बाँधकर दीनभावसे सम्राट्के सामने जा खड़ा हुआ । अबुल्फ़ज़लके वकीलको इस दशामें आया देख सम्राट् जार ज़ार रोने लगे । उनकी आँखोंसे जलधारा बह चली । उनका हृदय विदीर्ण होने लगा । उस समय सम्राटको जितना शोक हुआ उतना शोक • कर लिया था कि, अकबर प्रत्येक विषयमें उसकी सम्मतिके अनुसार ही सारे काम करता था । संक्षेपमें कहें तो अबुल्फज़ल अकबरका दारी, सलाहकार, विश्वस्त, सबसे बड़ा मंत्री, दर्बारी घटनाओंकी याददाश्त लिखनेवाला और दीवानी महकमेका हाकिम था । इतना ही नहीं वह अकबरकी जिव्हा और बुद्धिमानी था । विशेषके लिए देखो,-' जर्नल ऑव द पंजाब हिस्टोरिकल सोसायटी ' वॉ. १ ला, पृ. ३१ तथा ' दोरे अकबरी' पृ. ४६३-५१६.
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