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सम्राट्का शेषजीवन ।
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लेकर स्वयमेव उसको देखने के लिए गया। फैज़ी उस समय मरणशय्या पर पड़ा था। हरेकने फैजी के बचनेकी आशा छोड़ दी थी। अबुल्फज़ल एक कमरेमें शोकग्रस्त बैठा था। बादशाह निस हकीमको ले गया था उस हकीमके इलाजसे भी कोई फायदा नहीं हुआ । अन्तमें वह ( फैजी ) इस संसारको छोड़ कर चला ही गया ।
अपने प्रिय कवि फैजीकी मृत्युसे अकबरको इतना दुःख हुआ कि, वह ज़ार ज़ार रोया था । इससे यह बात सहन ही समझमें
आ जाती है कि, फैजी पर अकबरका कितना प्रेम था। जिस रुपये खर्च कर देता था । जहाँगीरके समयमें, जहाँगीरने उसे दोहज़री बनाया था । अन्तमें हिजरी सन् १०१८ (ई. स. १६१०) की ५ वा मुहर्रम के दिन उसका देहान्त हुआ था । देखो,-'आईन-इ-अकबरी' के प्रथम भागके अंग्रेजी अनुवादके पृ० ४६६-४६७ ।
१ फैजीका जन्म ई. सन् १५४६ में आगरेमें हुआ था। उसका नाम अबुल्फेज था । नागारके रहनेवाले शेखमुबारिकका वह ज्येष्ठ पुत्र था ! उसको अरबी भाषा, काव्यशास्त्र आर वैद्यकशास्त्रका बहुत अच्छा ज्ञान था । उसके साहित्य ज्ञानकी प्रशंसा सुनकर अकबरने ई. सन् १५६८ में उसे अपने पास बुलाया था । वह अपनी योग्यतास थोड़े हो दिनों में अकबरका सदाका सहवासी और मित्र बनगया था । सम्राट् उसे शेखजी कहकर पुकारता था। राज्यके तेतीसवें वर्षमें वह 'महाकवि' बनाया गया था। फैजीको दमका रोग होगया था और उसी रोगसे वह राज्यके ४० वे वर्षों मर गया था। कहा जाता है कि, उसने १०१ पुस्तकें लिखी थीं। वह पढ़नेका बहुत शौकीन था। जब वह मरा तब उसके पुस्तकालयमेंसे ४३०० हस्तलिखित पुस्तकें निकली थी। उन पुस्तकाको अकबरने अपने पुस्तकालयमें रक्खा था ।
फजी प्रारंभमें राजकुमारका शिक्षक नियत हुआ था। उसने कुछ समय तक एलचीका कार्य भी किया था । विशेषके लिए देखो,-'आईन-इ-अकबरी' के प्रथम भागके अंग्रेजी अनुवादके पृष्ठ ४९०-९१ तथा 'दरबारे अकबरी' पृ० ३५९-४१८.
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