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________________ ॥ अहम् ॥ सूरीश्वर और सम्राट्। प्रकरण पहिला। परिस्थिति। सार परिवर्तनशील है। इसमें एक भी वस्तु ऐसी दृष्टिगत नहीं होती जो सदैव एक ही स्थितिमें स्थित रही हो । एक समय जिस बालकको हम siness सांसारिक वासनारहित, पालनेमें झूलता देखते हैं, वही कुछ काल बाद, जवानीके मदसे मस्त, सांसारिक मोहक पदार्थोसे परिवेष्टित हमें दिखाई देता है; यह क्या है ? अपने शरीर-बलके मदसे उन्मत्त हो कर जो पृथ्वी पर पैर रखना भी लज्जास्पद समझता है, वही बुढ़ापेमें लकड़ीके सहारे टक टक करता चलता है; यह क्या है ? संसारकी परिवर्तनशीलता या और कुछ ? जिस सूर्यको हम सवेरे ही अपनी प्रखर प्रतापी किरणे फैलाते हुए उदयाचलके सिंहासन पर आरूढ़ होता देखते हैं, वही संध्याके समय निस्तेज हो, क्रोधसे लाल बन अस्ताचलकी गहन गुफामें छिपता हुआ ज्या हमारे दृष्टिगत नहीं होता है ? एक समय हम देखते हैं कि, जगत्को प्रकाशमय बनानेवाला गगन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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