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________________ सम्राट्का शेषजीवन। लड़केका १६ बरसके और लड़कीका १४ बरसके पहले ब्याह न किया जाय। उसने जैसे पुनर्विवाहका निषेध किया था, वैसे ही वृद्ध स्त्रियाँ युवकोंके साथ ब्याह न करें इसका भी प्रबंध किया था। कहा जाता है कि मुसलमानोंमें उस समय यह रिवाज विशेष रूपसे प्रचलित था । सम्राट्का खयाल था कि, जो मनुष्य एकसे विशेष स्त्रियोंके साथ ब्याह करता है वह स्वतः अपना नाश करता है । जो हिन्दु बलिदानके नाम जीबोंकी हिंसा करते थे उन्हें भी, उस कार्यको अन्यायका कार्य बताकर, रोक दिया था। रेवेन्यु विभागका सारा भार किसानोंपर है यह समझकर उसने कृषकोंके कई कष्टदायक 'कर बंद कर दिये थे। इतना ही नहीं, हिन्दुराजाओंने जो 'कर' लगाये थे उन्हें भी उसने उठा दिया। उनसे जो 'कर' लिया जाता था वह भी मर्यादित था । वह 'कर' भी यदि किसीको भारी जान पड़ता तो अकबर उसमें भी कमी कर देता था । यदि कोई अपनी पैदावारका अमुक भाग देना चाहता था तो सम्राट् 'कर' के स्थानपर उसको ही स्वीकार कर लेता था। जिस वर्ष फसलें बिगड़जातीं, उस वर्षका 'कर' किसानोंसे बिलकुल ही नहीं लिया जाता था। कर' की व्यवस्थाका कार्य उसने टोडरमलको सौंपा था, कारण, वह पहलेहीसे जमींदार था, इसलिए इस विषयका उसे विशेष ज्ञान था । प्रजाके लाभार्थ ऐसी ऐसी व्यवस्थाएँ करनेवाला राजा प्रजाप्रिय क्यों न होता ? समस्त धोके लोगोंको समानदृष्टि से देखने और प्रजाकी भलाईहीमें अपनी भलाई समझनेवाला राजा-चाहे व हिन्दु हो या मुसलमान, पारसी हो या यहूदी, जैन हो या बौद्ध, चाहे कोई भी हो-यदि संसारमें प्रशंसापात्र है; प्रजा उसको प्यार करती है तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है। 42 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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