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________________ ३२६ सूरीश्वर और सम्राद। राजाकी सहायता लिये विना अकेले अपनी फौजके साथ युद्धस्थल में जानेवाली, मालवाधीश बाजबहादुरको परास्त करनेवाली, सम्राटको 'दरबारे अकबरी' नामकी उर्दू पुस्तकके पृष्ठ ८४३ में बहुत चित्ताकर्षक बातें लिखी हैं। उनसे मालूम होता है कि, हेम रेवाडीका रहनेवाला ह्रसर बनिया था। यद्यपि वह सुंदर शरीरवाला नहीं था तथापि वह प्रबंध करनेमें होशियार, उत्तम युक्तियोंसे कार्य करनेवाला और युद्धमें विजयलाभ करनेवाला था। वास्तवमें अबतक उसके गुण छिपाये और दुर्गुण ही प्रकाशित किये गये हैं। प्रो० आजाद कहते हैं कि, इस बनियेको उसका भाग्य गलीकूचोमेंसे घसीटकर सलीमशाहकी फौजके बाजारमें लेगया। बाजारमें दुकान लगाकर वह हरेकके साथ मिलजुलकर रहने लगा। लोग उससे महोब्बत करने लगे। परिणाममें वह चौधरी बनाया गया। धीरे धीरे वह कोतवाल और फौजदारके पद पर पहुँचा । अपने ओहदेपर रहकर उसने ईमान्दारीसे काम किया। सेवासे, मालिककी भलाईमें लगे रहनेसे अथवा लोगोंकी चुगलियोंसे-चाहे किसी भी सबबसे हो-वह बादशाहका प्रिय होगया। इससे अमीर उमरावोंके कार्य उसके हाथमें आने लगे। अन्तमें उसके भाग्यने उसको बादशाहका सबसे बड़ा और प्यारा वजीर बना दिया । चगताई वंशके इतिहास लेखक बनियेकी जातिको गरीब समझकर चाहे कुछ लिखें; मगर हेमूका प्रबंध उसके कानून और उसके हुक्म ऐसे दृढ थे कि, ढीली दालने गोश्तको दबा दिया । ( बनियेने मुसलमानोंको नीचा दिखा दिया) फिर महमूदआदिल बादशाह जब पठानोंके युद्धमें मारा गया तब वह एक जबर्दस्त राजा बन गया। उसी अवसरपर दिल्ली और आगरेके आसपास भयंकर दुष्काल पड़ा था। बदाउनीने इसका हृदय-द्रावक वर्णन लिखा है। वह कहता है,-" उस समय देशमें ढाई रुपयेमें १ सेर मकई भी नहीं मिलती थी। भलेभले आदमी तो दवाजे बंदकरके घरहीमें बैठे रहते थे। दूसरे दिन उनके घर देखे जाते तो उनमेसे दस बीस मुर्दे निकलते । गाँवों और जंगलोंको तो देखता ही कौन था ? कफन कौन लावे और दफन कौन करे ? गरीव अन्नकष्टको मिटानेके लिए जंगली वृक्षोंके छालपत्तोंपर दिन निकालते थे। अमीर गायों और भेंसोंको बेचते थे। लोग उन्हें खानेको लेजाते थे । जो लोग ऐसे जानवरोंको मारकर खाते थे उनके हाथपैर सूज जाते और थोड़े ही दिनों में वे मौतके शिकार बन जाते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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