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सम्राट्का शेषजीवन। विरुद्ध युद्ध किया था उसीको सम्राट्ने अपना कृपात्र बनाया और अन्तमें उसे दोहजार सेनाका अधिनायक नियत किया ।
कालिंजर अलाहाबादसे ९० माइल और रीवांसे ६० माइक है। वहाँका किला जीतनेके लिए अकबरने मजनूनखाँ काक्षालको
बाजबहादुर हिजरी सन् ९६३ ( ई. स. १५५५) में मालवाका राजा हुमाथा । उसने 'गढ' पर आक्रमण किया था; परन्तु राणी दुर्गावतीने उसको हराया। इसके बाद वह ऐयाशीमें डूब गया था । वह अद्वितीय गानेवाला था। इसलिए उसने अच्छी अच्छी गानेवालियोंको जमा किया था । उनमें रूपमती भी एक थी। लोग अबतक उसको याद करते हैं।
वह हि. सं. १०.१ ( ई. सं. १५९३ ) के लगभग मरा था । कहा जाता है कि, बाजबहादुर और रूपमती दोनों एक ही साथ उज्जैनक एक तालाबके मध्य भागमें गाड़े गये थे । विशेषके लिए देखोआईन-इ-अकबरी के प्र, भागका अंग्रेजी अनुवाद पृ. ४२८ तथा आर्चियो लॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया; वो० २ रा, ले० ए, कनिंगहाम. पृ० २८८ से २९२. ( Archelogical survey of India Vol. II. by A. Cunningham pp. 288-292.
१ यह हुमा)का बड़ा प्रधान था। इसके पास नारनोल (पंजाबकी) जागीर थी । जब हुमायूँ ईरान भाग गया था तब हाजीखाँ ने नारनोलको घेर लिया था । मगर राजा बिहारीमलकी प्रार्थनासे मजनूनखाँको हाजीखाँने कोई कष्ट नहीं पहुँचाया था । उसे सहीसलामत नारनोलसे निकल जाने दिया था ।
जब अकबर गद्दी पर बैठा तब मजनूनखाँ माणिकपुर-जो साम्राज्यको पूर्व सीमापर था-का जागीरदार बनाया गया । वहाँ उसने वीरतापूर्वक अकबरकी हुकूमत कायम रखनेका प्रयत्न किया था । खानजमानको मृत्युतक यह वहीं रहा था । हि. स. ९७७ (ई. स. १५६९) में उसने कालिंजर. को घेरा था । कालिंजरका किला उस वक्त राजा रामचंद्रके अधिकारमें था । उसने यह किला बिजलीखाँसे जो पहाड़खाँका गोदका लडका था-बहुत बड़ी रकम देकर मोल लिया था । अन्तमें राजा रामचंद्र कालिंजर मजनूनखाँको
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