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________________ सूरीश्वर और सन्नाद । " आपसे छिपा हुआ क्या है ? ' बादशाहने उसी समय थोडासा ये दो दिन फरवरदीन महीनेके, पहला और उन्नीसवां, दिन हैं । यह अन्तिम दिन शरफ ( अर्थात् गति ) का है । इतना विवेचन होजानेके बाद यह बात सहज ही समझमें आजाती है कि, नवरोजका दिन फरवरदीन महीनेका पहला दिन है। इसका उत्सव उन्नीस दिनतक होता था । इसलिए उन्नीसों दिनोंको कोई यदि किसी अपेक्षासे नवरोजके दिन कहता है तो उसका कथन व्यवहार दृष्टिसे सत्य माना जा सकता है। जैसे, जैनियोंमें सिर्फ एक ही दिन ( भादवा सुदी ४ का ) पर्युषणका है, तो भी उसके लिए आठ दिनतक उत्सव होता है इसलिए लोग भाठो दिनोंको पर्युषणके दिन मानते हैं। मगर फरवरदीन महीनेके इन उनीस दिनोंको छोड़कर ऊपर जो दूसरे दिन गिनाये गये हैं। वे हरगिज़ नवरोजके दिन नहीं माने जासकते हैं। उपर्युक्त उत्सवके दिनोंमें लोग आनंदमें मग्न होकर उत्सव करते थे । प्रत्येक प्रहरमें नकारे बजाये जाते थे; गायक गाते थे। इन त्योहारोंके पहले दिनसे ( नवरोजके दिनसे ) तीन रात तक रंग बिरंगे दीपक जलाये जाते थे । और दूसरे त्योहारोंमें तो केवल एक रात ही दीपक जलाये जाते थे । ___ऊपर कहे हुए उत्सवके दिनोंमेंसे प्रत्येक महीनेके तीसरे उत्सबके दिन सम्राट अनेक प्रकारकी वस्तुओंका ज्ञान प्राप्त करनेके लिए, बहुत बड़ा बाजार लगवाता था । उसमें अपनी दुकाने लगाने के लिए उस समयके अच्छे अच्छे सभी व्यापारी आतुर रहते थे। दूर दूरके देशों से सभी प्रकारका माल मंगवाकर रखते थे। ____ अन्तःपुरकी स्त्रियाँ उसमें आती थीं। अन्यान्य त्रियोंको भी उसमें आमं. त्रण दिया जाता था । खरीदना और बेचना तो सामान्य ही था । खरीदने योग्य वस्तुओंका मल्य बदलनेमें अथवा अपने ज्ञानको बढ़ानेमें सम्राटू उत्स. वोंका उपयोग करता था । ऐसा करनेसे उसको राज्यके गुप्त भेद, लोगोंका चाल चलन और प्रत्येक कार्यालय तथा कारखानेकी भली बुरी व्यवस्थाएँ मालूम होजाती थीं । ऐसे दिनोंका नाम सम्राट्ने 'खुशरोज' रक्खा था । जब स्त्रियोंका यह बाजार समाप्त होजाता था तब सम्राट पुरुषोंके लिए बाजार. भरवाता था । प्रत्येक देशके व्यापारी अपनी वस्तुएँ बेचनेको लाते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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