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शिष्य परिवार |
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द्रजीके पास पढ़ने बिठाया था । भानुचंद्रजी जब माँडवगढ़ में गये
तब जहाँगीरने कहा:
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" मिल्या भूपेनई, भूप आनंद पाया,
भले तुमे लई अहीं भाणचंद आया; तुम पासिथि मोहि सुख बहूत होवइ,
सहरिअर भगवा तुम वाट जोवइ । १३०९ पढ़ावो अहं पृतकुं धर्म्मवात,
जिउँ" अवल सुणता तु पासि तात; भागचंद ! कदीम 'तुमे हो हमारे,
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की तुमहोम्महि प्यारे | १३१०
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भानुचंद्रजी जब बुरहानपुर गये थे तब उनके उपदेश से वहाँ दश मंदिर बने थे । मालपुरमें उन्होंने 'बीजामतियों' से शास्त्रार्थ करके उन्हें परास्त किया था । यहाँ भी उनके उपदेशसे एक भव्य मंदिर बना था, स्वर्णकलश चढ़ाया गया था । प्रतिष्ठा भी उन्होंने ही कराई थी। जब वे मारवाड़ - अन्तरगत जालौर में गये थे तब उन्होंने एक साथ इक्कीस आदमियोंको दीक्षा दी थी। कवि ऋषभदास लिखता है कि, उनके सब मिलाकर ८० विद्वान् शिष्य और १३ पंन्यास थे ।
४- पद्मसागर; ये अच्छे वादी थे । प्रसंग प्राप्त होने पर शास्त्रार्थ करके दूसरों को परास्त करनेमें वे अच्छे कुशल थे। सीरोहीके राजाके सामने नरसिंह भट्टको उन्होंने बातों ही बातों में निरुत्तर कर दिया था । वह घटना इस तरह हुई थी, -
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१ राजासे; २ - श्रेठ; ३- तुम ४ अच्छा हुआ; ५ - यहाँ ; ६ - तुमसे; होता है; ८ - देखता है; ९ - मेरे ; १० - जैसे; ११ - तुमसे १२- तुम हो; १३सबसे १४ - मुझे |
+ यह गाँव जयपुर रियासत में अजमेर से लगभग एचास माइल पूर्व में हैं ।
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