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________________ (११) उसका अनुवाद संतोषकारक न हो सकने के कारण प्रथम संस्करणम नहीं दिया गया था; हाँ उसका उल्लेख प्रथम संस्करणकी भूमिका जरूर कर दिया गया था, वही फर्मान इसबार परिशिष्ठ 'च' में दे दिया गया है । अन्य पाँच फर्मानोंकी भांति यह फर्मान भी जैन इतिहासमें बहुत महत्त्वका है। हीरविजयसूरिके प्रधान शिष्य विजयसेनमूरिका स्वर्गवास खंभातके पासका अकबरपुरमें हुआ था । उनका स्मारक कायम रखनेके लिए, स्तूपादि करानेको, दश वीघा जमीनका एक टुकडा चंदू संघवीने बादशाह जहाँगीरसे माँगा था। बादशाहने 'मदद-ई-मुभाश । जागीरके रूपमें, अकबरपुरहीमें उतनी जमीनका भाग दे दिया था। इस पुस्तक के २३८ । पृष्ठमें निस बातका उल्लेख हैं उसको यह फर्मान अक्षरशः प्रमाणित करता है। पाठक देखेंगे कि इस फर्मानमें केवल भूमी देने की ही बात नहीं है, इसमें उसके शारीरकी आकृतिका और उसने कैसे मौके पर जमीन माँगी थी इसका भी पूर्ण उल्लेख है। अतः यह फर्मान विजयसेनमरिके स्मारकके साथ घनिष्ठ संबंध रखनेवाला होनेसे ऐतिहासिक सत्यको विशेष दृढ करता है। . यह फर्मान बहुत जीर्ण था, इसलिए इस का अनुवाद करना अत्यंत कठिन था, तो भी पंजाबके वयोवृद्ध मौलवी महम्मदमूनीरने अत्यधिक परिश्रम करके इसका अनुवाद कर दिया। इसी तरह शिवपुरीके तहसीलदारे नवाब अब्दुलमुनीमने उसकी जाँच कर दी इसके लिए उक्त दोनों महाशयों को धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता। अन्तमें-जगद्गुरु हीरविजयसूरि केवल जैनोंहीके नहीं बल्के मारतवर्षके उद्धारक एक महान् पुरुष थे । अकबरके समान मुसलमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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