________________
mma
सूरीश्वर और सम्राद। तथापि जबसे जगह जगह हीरविजयसूरि सप्रमाण मूर्तिपूजाको सिद्ध करने लगे तबसे मूर्तिको नहीं माननेवाले अनेक साधुओं और श्रावकोंके विचार फिरने लगे । इतना ही नहीं अनेक साधु तो अपने मतको छोड़कर हीरविजयसूरिजीके पास पुनः दीक्षित हुए । और मूर्तिपूजक बने । इस तरह लौंकामत छोड़कर मूर्तिपूजक बने हुए साधुओंमेंसे मेघजीऋषिके-जो एक साथ तीस साधुओं सहित अपना मत छोड़कर तपागच्छमें आये थे-दीक्षा प्रसंगका यहाँ उल्लेख किया जाता है ।
लौकामतमें मेघजी नामक एक साधु मुख्य गिना जाता था । यद्यपि पहिले वह लौंकाका अनुयायी था, मगर पीछेसे जैनसूत्रोंका अवलोकन करनेसे उसको विदित हुआ कि,जैनसूत्रोंमें मूर्तिपूजाका उल्लेख है। मगर जो मूर्तिपूजाका विरोध करते हैं वे झूठे हैं, कदाग्रही हैं । मेघजीकी श्रद्धा मूर्ति और मूर्तिपूजाको माननेकी हुई। शनैः २ उसने अन्य भी कई साधुओंको अपनी मान्यता समझाई । वे भी उसको ठीक समझने लगे । तपागच्छके साधुओंमें उस समय हीरविजयसूरि मुख्य थे । मेघनी आदि लौंकागच्छके अनुयायी साधुओंकी इच्छा हीरविजयसरिसे तपागच्छकी दीक्षा लेनेकी हुई । मूरिजीको इस बातकी सूचना मिलते ही वे तत्काल ही अहमदाबादमें आये। क्योंकि उस समय मेघनी आदि साधु वहीं थे। मूरिजीके अहमदाबाद पहुँचने पर मेघनी आदिने उनसे पुनः दीक्षा ग्रहण करना स्थिर किया। अहमदाबाद के श्रीसंबने उत्सव करना प्रारंभ किया।
उस समय एक और भी आश्चर्योत्पादक बात हुई । वह यह है,सम्राट अकबर उस समय अचानकही अहमदाबाद आ गया था । साथ
__* अकबरका यह आगमन उस समयका है कि, जब उसने गुजरात पर प्रथम बार चढ़ाई की थी । वह ई. स. १५७२ के नवम्बरकी २० वीं तारीखको अह्मबादमें आया था और ई. स. १५७३ की १३ वी अप्रेलको
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org