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________________ सूबेदारों पर प्रभाव । कासिमखाँने तत्काल ही तेजसागरजी और सामलसागरजीको बुलाया और कहा:-" महाराज, तुम्हें वापिस समुदायमें लेलेते हैं, मगर आगेसे महाराजकी आज्ञाका उल्लंघन न करना।" फिर सूरिजीको उसने जुलूसके साथ उपाश्रय पहुँचाया । सुल्तान मुराद । * वि० सं० १६५० में पाटनसे सिद्धाचलजी जानेके लिए एक बहुत बड़ा संघ निकला था। सूरिजी भी उसके साथ थे। संघ जब अहमदाबाद पहुंचा तब सुल्तान मुरादने सूरिजी और संघका बहुत सत्कार किया । उसने उत्तमोत्तम रत्न रखकर सूरिजीकी पूजा की और संघका भी अच्छा आतिथ्य किया। सुल्तानने मूरिजीके मुखसे धर्मोपदेश सुननेकी इच्छा प्रकट की। सूरिजीने उसे धर्मोपदेश दिया। सूरिजीने उस समय हिंसाका त्याग, सस्यका आचरण, परस्त्री त्याग, अनीति अन्यायसे दूर रहने, और भंग, अफीम, मदिरा आदि व्यसनोंसे बचनेका खास उपदेश दिया । उसने सूरिजीके उपदेशको मानकर उस दिन कोई जीव हिंसा न करे ऐसा ढिंढोरा पिटवा दिया । जब सूरिजीने वहाँसे विहार किया तब उसने दो मेवड़े भी उनके साथ भेजे। इसके उपरान्त सूरिजीने अपने भ्रमणमें दूसरे भी अनेक सुल्तानों और सूबेदारोंको उपदेश दिया था और उनसे जीवदयाके कार्य कराये थे। * अहमदाबादका सूबेदार आजमखाँ जब मकाकी यात्राके लिये गया था तब उसके स्थानमें बादशाह अकबरने अपने पुत्र सुल्तान मुरादको नियत किया था। इसके बारेमें जो विशेष जानना चाहें वे ' मीराते अहमदी' (गुज. राती अनुवाद ) का पृ० १८६ देखें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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