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सूबेदारों पर प्रभावी
पाँचसौ धनुषका था। उनके बाद दूसरे, तीसरे पैगम्बर जैसे जैसे होते गये वैसे ही वैसे उनका शरीरप्रमाण भी कम होता गया। उनके वस्त्रों
और लक्षणोंमें भी फरक है । ऋषभदेव भगवानने सफेद वस्त्र बताये हैं। वे भी नापके । महाव्रत पाँच बताये-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य
और अपरिग्रह । पहले और आखिरी तीर्थकरोंके साधुओंके आचार तो करीब करीब एकसे ही हैं, परन्तु बीचके बाईस तीर्थंकरोंके साधुओंके आचारमें कुछ फर्क है। बाईस तीर्थंकरोंने पाँच वर्णके वस्त्र बताये हैं। उनका कोई प्रमाण भी नहीं बताया। उन्होंने महाव्रत भी चारही बताये । अर्थात् उन्होंने ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह दोनोंका एकहीमें समावेश कर दिया । इस तरह भेद होनेका और कोई कारण नहीं है कारण सिर्फ एक है। वह यह कि,बाईस तीर्थंकरोंके समयके मनुष्य सरल और बुद्धिमान थे, इसलिए थोड़ेमें बहुत समझ जाते थे । मगर इस कालके मनुष्य वक्र और जड़ कहलाते हैं । इसलिए नितना आचार बताया गया है उतना भी वे नहीं पाल सकते हैं । यह बात खास तरहसे ध्यानमें रखना चाहिए कि, आचारमें अन्तर होने पर भी उनके प्रकाशित किये हुए सिद्धान्तोंमें कोई अन्तर नहीं है। पहिलेके तीर्थंकरोंने जैसे सिद्धान्त प्रकाशित किये हैं वैसे ही सिद्धान्त पीछेके तीर्थकरोंने भी किये हैं। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवको हुए असंख्य वर्ष बीत गये हैं। अन्तके महावीरस्वामीको हुए लगभग दो हजार वर्ष बीते हैं । बस उन्हीके बताये हुए मार्गमें हम द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके अनुसार चल रहे हैं।
आजमखाँको बड़ा आनंद हुआ। कुछ देर बाद उसने और पूछा:--" आपको साधु हुए कितने वर्ष हुए ? "
सूरिजी-पावन बरस ।
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