SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६ सूरीश्वर और सम्राट् । अमदाबाद आते ही उसने सूरिजीको बुलाया । वे सोमविजयजी और धनविजयजीको साथ लेकर आजम खाँ के बँगले गये । राजवाड़ा में प्रवेश करते ही आज़मखाँने सूरिजीका सत्कार किया । थोड़ा वार्तालाप होने पर आजम खाँने कहा : -- महाराज ! आपके पवित्र नामसे मैं मुद्दतसे परिचित हूँ । आपके शुभ नामका स्मरण करनेहीसे मुझे अपने कार्य में पूर्णतया सफलता हुई है । मैं चिरकालसे आपके दर्शनोंके लिए उत्सुक था । सच तो यह है कि, जबसे बादशाह अकबर आपका मुरीद बना तभी से मैं आपसे भेट करने की इच्छा कर रहा था । आज मेरी इच्छा पूरी हुई। इससे मैं अपने आपको भाग्यशाली समझता हूँ । " 66 इस तरह विवेक बतानेके बाद उसने कहाः " महाराज ! आप किस पैगंबर के चलाये हुए धर्मको मानते हैं ? " सूरि० - महावीरस्वामीके | आज ० -- उनको गुजरे कितने बरस हुए हैं ? सूरि० - करीब दो हजार बरस । आज ० - तब तो आपका धर्म बहुत पुराना नहीं है । सूरि० - मैं जिन महावीरस्वामीका नाम लेता हूँ वे तो हमारे चौबीसवें तीर्थकर पैग़म्बर हैं । उनके पहिले भी तेईस पैग़म्बर हो गये हैं । हम महावीरस्वामीके साधु कहलाते हैं । क्योंकि उन्होंने जो मार्ग बताया है उसी पर हम चलते हैं । आज ० - आपके पहिले और आखिरी पैगम्बरमैं क्या कोई फर्क है ? सूरि०-- पहिले पैग़म्बरका नाम ऋषभदेव है । उनका शरीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy