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सूरीश्वर और सम्राट् ।
अमदाबाद आते ही उसने सूरिजीको बुलाया । वे सोमविजयजी और धनविजयजीको साथ लेकर आजम खाँ के बँगले गये । राजवाड़ा में प्रवेश करते ही आज़मखाँने सूरिजीका सत्कार किया । थोड़ा वार्तालाप होने पर आजम खाँने कहा :
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महाराज ! आपके पवित्र नामसे मैं मुद्दतसे परिचित हूँ । आपके शुभ नामका स्मरण करनेहीसे मुझे अपने कार्य में पूर्णतया सफलता हुई है । मैं चिरकालसे आपके दर्शनोंके लिए उत्सुक था । सच तो यह है कि, जबसे बादशाह अकबर आपका मुरीद बना तभी से मैं आपसे भेट करने की इच्छा कर रहा था । आज मेरी इच्छा पूरी हुई। इससे मैं अपने आपको भाग्यशाली समझता हूँ । "
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इस तरह विवेक बतानेके बाद उसने कहाः " महाराज ! आप किस पैगंबर के चलाये हुए धर्मको मानते हैं ? "
सूरि० - महावीरस्वामीके |
आज ० -- उनको गुजरे कितने बरस हुए हैं ? सूरि० - करीब दो हजार बरस ।
आज ०
- तब तो आपका धर्म बहुत पुराना नहीं है ।
सूरि० - मैं जिन महावीरस्वामीका नाम लेता हूँ वे तो हमारे चौबीसवें तीर्थकर पैग़म्बर हैं । उनके पहिले भी तेईस पैग़म्बर हो गये हैं । हम महावीरस्वामीके साधु कहलाते हैं । क्योंकि उन्होंने जो मार्ग बताया है उसी पर हम चलते हैं ।
आज ० - आपके पहिले और आखिरी पैगम्बरमैं क्या कोई फर्क है ?
सूरि०-- पहिले पैग़म्बरका नाम ऋषभदेव है । उनका शरीर
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