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________________ - सूरीश्वर और सम्राट्। चार्वाक, नाजरीन, यहूदी, साबी और पारसी आदि प्रत्येक वहाँके धर्मानुशीलनका अपूर्व आनंद लेते थे।" इस स्थानमें ' यति ' और 'सेवड़ा' शब्द हैं वे जैनसाधुओंके लिए आये हैं। बौद्धसाधुओंके लिए नहीं । तो भी जैसा कि डॉक्टर स्मिथ कहते है कि,-मि० चैलमर्सने अकबरनामाके अंग्रेजी अनुवादमें भूलसे उनका अर्थ 'जैन और बौद्ध , किया था। उनके बाद मुसलमानी इतिहासके संग्रहकर्ता इलियट और डाउसनने भी वही भूल की । इन तीनोंकी भूलने वाननोअरको भी भूल करनेके लिए वाध्य किया । इस तरह हरेक लेखक, एकके बाद दूसरा, भूल करता गया और उसका परिणाम यहाँ तक पहुँचा कि, जैनेतर लेखकोंने 'जैन' शब्को सर्वथा उड़ा ही दिया । अब जहाँ देखो वहीं 'बौद्ध शब्द ही दिखाई देता है । आधुनिक हिन्दी, बंगाली या गुजराती लेखकोंने भी ऐसी ही भूलकी है । मगर किसीने यह जाननेकी कोशिश नहीं की कि, वास्तवमें अकबरके दरबारमें कोई बौद्धसाधु था या नहीं ? या अकबरने कभी बौद्धसाधुओंका उपदेश सुना भी था या नहीं ? . वस्तुतः खोजनेसे यह पता चल चुका है और निर्विवाद यह बात मान ली गई है कि, अकबरको कभी किसी बौद्ध विद्वान्के साथ समागम करनेका अवसर नहीं मिला था। इसके लिए अनेक प्रमाण देकर पुस्तकके कलेवरको बढ़ानेकी कोई आवश्यकता नहीं दिखती । सिर्फ अबुल्फ़ज़लके कथनको उद्धृत कर देना ही काफी होगा । वह आईन-इ-अकबरीमें लिखता है कि, " चिरकालसे बौद्ध साधुओंका कहीं पता नहीं है। बेशक x-देखो-'अकबरनामा' बेवरिज कृत अंग्रेजी अनुवाद खंड ३, अध्याय ४५, १३ ३६५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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