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________________ विशेष कार्य सिद्धि। उनका परिचय, 'श्रमण'' सेवड़ा ' या ' यति ' के नामसे कराया है । वे यह लिखना नहीं भूले हैं कि अकबरके दर्बारमें जैनसाधु गये थे और उस पर इनका खूब प्रभाव पड़ा था। मगर पीछेसे जितने इतिहासलेखक और अनुवादक हुए हैं उन्हींने असली बातको छिपाया है । यह बात उनके ग्रंथोंको ध्यानपूर्वक देखनेसे तत्काल ही मालुम हो जाती है । विशेष आश्चर्यकी बात तो यह है कि, अबुरफ़ज़लने आईन-इ-अकबरीके दूसरे भागके तीसवे आईनमें अकबरकी धर्मसभाके १४० मेम्बरोंको पाँच श्रेणियों में विभक्त करके उनकी जो लिस्ट दी है उसमें प्रथम श्रेणीमें हरिजीसूर ( हीरविजयसूरि ) और पाँचवीं श्रेणीमें विजयसेनसूर और भानचंद (विजयसेनसूरि और भानुचंद्र)नाम दिये हैं। उनके होते हुए भी ये कौन थे ? किस धर्मके अनुयायी थे ? यह जाननेका प्रयत्न अनुवादकों और लेखकोंने नहीं किया। यदि वे प्रयत्न करते और जैनधर्मसे परिचय करते तो उन्हें तत्काल ही मालूम हो जाता कि, जिन तीन नामोंका उल्लेख अबुल्फज़लने किया है वे बौद्ध श्रमणों या अन्य धर्मवालोंके नहीं हैं; परन्तु जैनसाधुओंके ही हैं। ऐसा होने पर इतिहासमें आज जो छिपानेका कार्य हो रहा है वह न होता । इस छुपानेके कार्यसे अलग रह कर इतिहास क्षेत्रमें सत्यमूर्यका प्रकाश डालनेका सौभाग्य आज तक अजैन विद्वानोंमेंसे यदि किसीने प्राप्त किया है तो वह ' अकबर दी ग्रेट मुगल , ( Akbar the Great Mogul ) नामक ग्रंथका लेखक डॉ० विन्सेंट. स्मिथ ही है । वह बहुत खोज करनेके बाद लिखता है कि, "अबुल्फज़ल और बदाउनीके ग्रंथों के अनुवादकोंने अपनी अनभिज्ञताके कारण ही 'जैन ' शब्दके बनाय · बौद्ध ' शब्दका प्रयोग किया है। कारण अबुल्फज़लने तो अपने ग्रंथमें स्पष्ट लिखा है कि,-सूफी, दाशनिक, तार्किक, स्मार्त, सुन्नी, शिया, ब्राह्मण, यति, सेवड़ा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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