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विशेष कार्य सिद्धि । आदर करता था। इससे सरदार उमराव भी उन्हें बहुत मानते थे। कहा जाता है कि, एक वार बुरहानपुरमें बत्तीस चौर मारे जाते थे; उस समय दयाभावसे प्रेरित होकर वे बादशाहकी आज्ञा ले, स्वयं वहाँ गये थे और उन चोरोंको छुड़ाया था । 'जयदास जपो' नामका एक लाड बनिया हाथी तले कुचल कर मारा जाता था उसको भी उन्होंने छुड़ाया था।
सिद्धिचंद्रजी जैसे विद्वान् थे वैसे ही शतावधानी भी थे। इससे बादशाह उन पर प्रसन्न रहता था। उनके चमस्कारसे चमत्कृत होकर ही उसने उन्हें 'खुशफहम' की मानप्रद पदवी दी थी। उन्होंने फारसी भाषा पर भी अच्छा अधिकार प्राप्त कर लिया था इससे कई उमरावोंके साथ भी उनकी अच्छी मुलाकात हो गई थी।
भिन्न भिन्न भाषाओंका ज्ञान, भिन्न भिन्न देशके मनुष्योंको उपदेश देनेमें अच्छी मदद देता है । कोई कितना ही विद्वान् हो, मगर यदि उसको भिन्न भिन्न भाषाओंका ज्ञान नहीं होता है तो वह अपने मनका भाव चाहिए उस तरहसे अन्यान्य भाषाएँ जाननेवालोंको नहीं समझा सकता है । केवल हिन्दी भाषाको जाननेवाला विद्वान अपनी विद्यासे बंगालियोंको लाभ नहीं पहुंचा सकता है और बंगाली भाषा ही जाननेवाले विद्वान्की विद्या हिन्दी या गुजराती भाषियोंके लिए निरुपयोगी है। इसीलिए तो प्राचीनकालमें जिसको आचार्य पदवी दी जाती थी उसकी पहिले यह जाँच करली जाती थी कि, वह विद्वान् होनेके साथ बहुतसी भाषाओंका जानकार भी है या नहीं ? अर्थात् आचार्यको भिन्न भिन्न देशोंकी भाषाएँ भी सीखनी पड़ती थीं। जो लोग उपदेशक हैं उन्हें इस बातका पूरा खयाल रखना चाहिए ।
ऋषभदास कविका कहना है कि, बादशाहने, सिदिचंद्रजी
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