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________________ उनकी उपेक्षा करने लग गया था, यह बात जहाँगीरद्वारा लिखे हुए अपने आत्मचरित- तौज़के जहाँगीरी' के प्रथम मागसे मालूम होती है। इस पुस्तकका मुख्य हेतु अकबर और हीरविजयसूरिका संबंध बताना ही था। इसलिए अकबरके बादके बादशाहोंके साथ जैनसाधुओंका कैसा संबंध रहा था सो बतानेका प्रयत्न मैंने, इप्त पुस्तकमें नहीं किया । मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि, जैसे जैसे विशेष रूपसे इस विषयका अध्ययन करनेकी मुझे सामग्री मिलती गई, वैसे ही वैसे अनेक नई बातें भी मालूम होती गई । उनमेंसे यद्यपि कइयोंको मैंने इस पुस्तकमें स्थान दिया है तथापि अनेकको विवश छोड़ देना पड़ा है। इतिहासके अभ्यासियोंसे यह बात गुप्त नहीं है कि, जितने हम गहरे उतरते हैं उतनी ही नवीन बातें इतिहासमेसे जाननेको मिलती हैं। ____ मैं पहले ही कह चुका हूँ कि यह पुस्तक एक ऐतिहासिक पुस्तक है; तो भी मैंने इस बातका प्रयत्न किया है कि, पाठकोंको इतिहासकी नीरसताका अनुभव न करना पड़े । मेरी नम्र मान्यता है कि,-प्रजाकी राजाके प्रति कैसी भावनाएँ होनी चाहिएं और राजामें किन किन दुर्गुणोंका अभाव व किन किन सद्गुणोंका सद्भाव होना चाहिए ? इस बातको जाननेके लिए इस पुस्तकमे चित्रित अकबरका चरित्र जैसे जनताको उपयोगी होगा; वैसे ही यह समझनेके लिए, किएक साधुका-धर्मगुरुका-नहीं नहीं एक आचार्यका समाज और देशकल्याणके साथ कितना घनिष्ठ संबंध होता है और संसारी मनुष्यकी अपेक्षा एक धर्मगुरुके सिर कितना विशेष उत्तरदायित्व होता है; इस पुस्तकमें वर्णित आचार्यश्री हीरविजयसूरिकी प्रत्येक बात सचमुच ही आशीर्वादरूप होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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