________________
(४)
जहाँगीर, शाहजहाँ, मुरादबख्श, औरंगजेब और आज़मशाह तक-घनिष्ठ रहा था । इतना ही नहीं उन्होंने भी अकबरकी तरह अनेक नये फर्मान दिये थे । अकबरके दिये हुए कई फर्मानोंको भी उन्होंने फिरसे कर दिया था। ऐसे कुछ फर्मानों के हिन्दी एवं अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित भी हो चुके हैं। इनके अलावा हमारे विहारभ्रमण के समय, खंभातके प्राचीन जैनभंडारोंको देखते हुए, सागरगच्छके उपाश्रयमेंसे अकबर और जहाँगीरके दिये हुए छः फ़र्मान ( जहाँगीरके एक पत्रके साथ ) अकस्मात् हमें मिल गये । खेद है कि उन छः फर्मानोंमेंसे एक फ़र्मानको-जो जहाँगीरका दिया हुआ है; जिसमें विजयसेनसूरिके स्तूपके लिए,खंभातके निकटवर्ती अकबरपुरमें, चंद संघवीके कहनेसे दस बीघे जमीन देनेका उल्लेख है, बहुत जीर्ण होजानेसे जिसका हिन्दी अनुवाद न हो सका-मैं इस पुस्तकमें न दे सका । शेष असल पाँच फर्मान-जो इस पुस्तकमें आई हुई कई बातोंको पुष्ट करते हैं-उनके हिन्दी अनुवाद सहित परिशिष्टमें लगा दिये हैं।
यहाँ यह कहना आवश्यक है कि, यद्यपि अकबरके बाद भी आज़मशाहतक जैनों और जैनसाधुओंका संबंध रहा था; तथापि अकबरके जितना प्रगाढ संबंध तो केवल जहाँगीरके साथ ही रहा था । पृष्ट २४०-२४१ में वर्णित जहाँगीर और भानुचंद्रजीकी मेट तथा परिशिष्ट (ङ) का पत्र इस बातको परिपुष्ट करता है। इस तरह जहाँगीर केवल तपागच्छके साधु भानुचंद्रजी और विजयदेवसूरिजीहीको नहीं चाहता था बल्के खरतरगच्छके साधु मानसिंहजी-जिनका प्रसिद्ध नाम जिनसिंहसरि था और जिनका परिचय इसी पुस्तकके पृ० १५६ में कराया गया है के साथ भी उसका अच्छा संबंध था। हाँ पीछेसे न मालूम क्यों जहाँगीर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org