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विशेष कार्यसिद्धि। 'हीरसौभाग्यकाव्य ' के रचयिताका कथन है कि,-" जब बादशाह लाहोरमें था, तब उसने होरविजयसूरिजीको लिखकर उनके प्रधानशिष्य-पट्टधर विजयसेनसूरिको बुलाया था। उन्होंने लाहोरमें जाकर नदिमहोत्सव करा कर भानुचंद्रजीको ' उपाध्याय ' की पदवी दी थी। शेख अबुल्फ़ज़लने उस वक्त छःसौ रुपये और कई घोड़ों आदिका दान किया था ।” अस्तु ।
बात दोनोंमेंसे कोईसी भी सत्य हो, मगर यह तो निर्विवाद है कि भानुचंद्रनीको' उपाध्याय ' पदवी लाहोरमें बादशाहके सामने उसीके अनुरोधसे हुई थी।
कहा जाता है कि, भानुचंद्रजीने अकबरके पुत्र जहाँगीर और दानीआलको भी जैनशास्त्र सिखलाये थे।
ऊपर हमने दो नवीन, कर्मचंद्र और मानसिंहके, नामोंका उल्लेख किया है । अतः इन दोनों महानुभावोंका संक्षिप्त परिचय यहाँ करा देना आवश्यक है।
कर्मचंद्र एक वार बीकानेरके महाराज कल्याणमलके मंत्री थे। धीरे धीरे उन्नत होते हुए अपने बुद्धिबल और कार्यचातुर्यसे उसने अकबरका मंत्रीपद प्राप्त किया था। मंत्री कर्मचंद्र, खरतरगच्छका अनुयायी, जैन था । इसलिए वह जैनधर्मकी उन्नतिके कार्यमें बड़े उत्साहके साथ योग देता था । बादशाह भी उससे बहुत स्नेह करता था । कर्मचंद्रहीके कारण खरतरगच्छके आचार्य श्रीजिनचंदररि अकबरके दर्वारमें गये थे । 'कर्मचंद्र चरित्रादि । कई ग्रंथोंसे मालूम होता है कि, जिनचंद्रमूरिने भी बादशाह पर अच्छा प्रभाव डाला था। उनके उपदेशसे उसने आषाढ़ सुदी ९ से १५ तक सात दिन तक कोई जीव हिंसा न करे, इस बातका फर्मान निकाला था और उसकी
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