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विशेष कार्य सिदि। १५१ नाम्नां सहस्रमिदमंशुमतः पठेद्यः
प्रातः शुचिनियमवान् सुसमाधियुक्तः। दूरेण तं परिहरन्ति सदैव रोगा
___ भीताः सुपर्णमिव सर्वमहोरगेन्द्राः ।। इति श्रीसूर्यसहस्रनामस्तोत्रं सम्पूर्ण ॥ अमुं श्रीसूर्यसहस्रनामस्तोत्रं प्रत्यहं प्रणमत्पृथ्वीपतिकोटीरकोटिसंघट्टितपदकमलत्रिखंडाधिपतिदिल्लीपतिपातिसाहिश्रीअकबरसाहिजलालदीनः प्रत्यहं शृणोति सोऽपि प्रतापवान् भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ ___इससे स्पष्ट मालूम होता है कि, बादशाह सूर्यके हजार नाम ज़रूर सुनता था और सुनाते थे भानुचंद्रजी। कादम्बरीकी टीका, विवेकविलासकी टीका और भक्तामरकी टीका आदि अनेक ग्रंथों में भानुचंद्रजीके नामके पहिले 'सूर्यसहस्रनामाध्यापकः' विशेषणका प्रयोग आया है । अतएव यह निर्विवाद सिद्ध होता है कि, भानुचंद्रजी ही बादशाहको सूर्यके हजार नाम सिखलानेवाले थे । अस्तु ।
___ काश्मीर पहुँचकर बादशाहने एक ऐसे तालाबके किनारे मुकाम किया जो चालीस कोसके घेरेमें था। तालाव पूरा मरा हुआ था। हीरसौभाग्यकाव्य ' के कर्ता लिखते हैं कि इस तालाब* को 'जयनल ' नामके राजाने बँधवाया था। उसका नाम 'झैनलंका'
* आईन-ई-अकबरीके दूसरे भागके, जैरिरकृत अंग्रेजी अनुवादके पृ. ३६४ में, तथा बदाउनी के दूसरे भागके लवकृत अंग्रेजी अनुवादके पृ. ३९८ में लिखा है कि- इस तालाबको बंधवानेवाला काश्मीर का बादशाह 'झैन-उलआबिदीन', जो कि- इ. स. १४१७ से १४६७ तक हुआ है, वह था। और इस तालाबको झैनलंका ( Zainlanka) कहते थे।
बंकिमचंद्रलाहिडी कृत ' सम्राट अकबर' नामक बंगाली ग्रंथके १८४ वें पेजमें भी इसका वर्णन आया है। 'हीरसौभाग्यकाव्य ' के कर्त्ताने जो 'जयनल' नाम दिया है, सो ठीक नहीं है।
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