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प्रतिबोध । उसके बाद दोनोंमें बहुत देरतक एकान्तमें वार्तालाप हुआ। उसका विषय क्या था सो कोई न जान सका।"
कहाजाता है कि, जब सूरिजी और बादशाह एकान्तमें वार्तालाप कर रहे थे तब मीठागप्पी नामका व्यक्ति-जिसको हर समय बादशाहके पास जानेकी आज्ञा थी-नंगे सिर ' नमो नारायणाय' पुकारता हुआ बादशाहके पास पहुँच गया । इतना ही नहीं अपने स्वभावानुसार वह कई हास्यजनक चेष्टाएँ भी करने लगा। बादशाहने उसकी इस आदतको मिटानेके लिए 'शाल । देकर निकाल दिया।"
एकान्तमें वार्तालाप जब समाप्त हुआ तब सूरिजी उपाश्रय गये। x x
x x इस प्रसंग पर एक दूसरी बातका स्पष्टीकरण करना भी जुरूरी मालूम होता है कि सरिजीने बादशाहसे इतनी मुलाकाते की,तबतक वे एक ही स्थानमें नहीं रहे थे। बीचमें वे मथुराकी यात्रा करनेके लिए भी गये थे । वहाँ उन्होंने पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथके दर्शन किये थे । इसी तरह जंबूस्वामी, प्रभवस्वामी आदि महापुरुषोंके ५२७ स्तूपोंकी भी उन्होंने वंदना की थी। वहाँसे गवालियर जाकर बावन गज प्रमाणकी ऋषभदेवकी मूर्तिको वासक्षेप पूर्वक नमस्कार किया था। उसके बाद वहाँसे वापिस आगरे गये थे । उस समय मेडताके रहनेपाले सदारंगने उत्साहपूर्वक हाथी, घोड़े और अन्यान्य कई पदार्थोंका दान किया था और बड़े आडंबरके साथ सूरिजीका नगरप्रवेश कराया था। वह अर्थात् संवत १६४१ का चौमासा सूरिजीने
आगरेमें किया था और चातुर्मासके समाप्त होनेपर पुनः फतेपुरसीकरी गये थे।
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