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प्रतिबोध |
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बीरबलने भक्तिविनम्र स्वर में कहाः " महाराज ! मुझे
विश्वास हो गया है कि, शंकर 'सगुण
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हरेक समझ सके ऐसी युक्तियोंसे होते देख सभीको बड़ा आनंद हुआ।
ही हैं।"
शंकरकी 'सगुणता सिद्ध
"
इस मुलाकात के बाद बहुत समय तक सूरिजी बादशाहसे न मिल सके, इसलिए एक दिन बादशाहने बड़ी ही आतुरता के साथ सूरिजीके दर्शन करनेकी अभिलाषा प्रकट की । सूरिजी बादशाहके पास गये । उसे प्रभावोत्पादक उपदेश दिया । सूरिजी का उपदेश सुनने से बादशाह के हृदय में एक और ही तरहकी शीतलताका संचार हुआ । सूरिजीके वचनों में सचमुच ही बड़ा माधुर्य था कि, उनको सुननेसे सुननेवालेके अन्तःकरण में शान्ति और आनंदका प्रसार हो जाता था । यही कारण था कि, उनका उपदेश सुननेकी बादशाहको बारवार इच्छा हुआ करती थी ।
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यहाँ एक बातका उल्लेख करना आवश्यक है कि, आजकलके राजा-महाराजा बहुत समय तक उपदेश सुनकर 'उपकार' माननेका जो फल उपदेष्टाको देते हैं, उतना ही फल देकर वह नहीं रह जाता था । वह समझता था कि, जगत्को तृणवत् समझनेवाले महात्मा लोग अपना अमूल्य समय व्यय कर हमको उपदेश देनेका जो कष्ट उठाते हैं, वह किसलिए ? ' आपका उपकार मानता शब्द सुननेहीके लिए नहीं, जगत्के और मेरे महात्माका उपदेश सुनकर तदनुसार या उसमेंसे अमल न किया जाय तो दोनोंके जो समय और शक्ति व्यय होते
हूँ।' सिर्फ ये कल्याण के लिए ।
एक बात पर भी
हैं उनसे लाभ ही क्या है ?
अकबर अपनी इस उदार भावनाही के कारण हरवार उपदेश
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