________________
सूरीश्वर और सम्राट । पुण्य, पाप, ईश्वर आदि पदार्थोंको नहीं मानता है। जो इन पदार्थोंको मानते हैं वे नास्तिक नहीं कहला सकते हैं।"
सूरिजीका यह उत्तर सुनकर बादशाहको बहुत आनंद हुआ। उसको विश्वास हुआ और उसने अबुल्फ़ज़लको कहा:--" अबतक मैं जितने विद्वानोंसे मिला उन सबने यही कहा था कि,-'जो हमारा है वही सत्य है। मगर सूरिजीके शब्दोंसे स्पष्ट हो रहा है कि ये अपनी बातको ही सत्य नहीं मानते हैं बल्कि जो सत्य है उसीको अपना मानते हैं । यही वास्तविक सिद्धान्त है । इनके पवित्र हृदयमें दुराग्रहका नाम भी नहीं है । धन्य है ऐसे महात्माको ! "
सूरिनी और बादशाहके आपसमें उपर्युक्त बातें हो रही थीं उस वक्त देवीमिश्र* नामके एक ब्राह्मण पंडित भी वहाँ ही आगये थे। उनको संबोधनकर बादशाहने पूछा:-" क्यों पंडितजी! हीरविजयसूरिजी जो कुछ कहते हैं वह ठीक है या नहीं ? "
पंडितजीने कहा:-" नहीं हुजूर ! मूरिनी जो कुछ कह रहे हैं वह बिलकुल वेदवाक्यके समान है । इसमें विरुद्धताका लेश भी नहीं है। मैने आजतक इनके समान स्वच्छ हृदयी, तटस्थ और अपूर्व विद्वान मुनि नहीं देखे । यह बात निःसंशय है कि ये एक जबर्दस्त पंडित-यति हैं।"
___ एक विद्वान् ब्राह्मणके निकाले हुए उपर्युक्त शब्द बादशाहकी श्रद्धाको यदि वज्रलेपवत् बना दें तो इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं है।
* ये अकबर के दबारके एक विद्वान् थे। महाभारतादि ग्रंथोंके अनुवादमें दुभाषिएका काम करते थे। बादशाहकी उनपर अच्छी कृपा थी। इनके संबंध जिन्हें विशेष जानना हो वे ' बदाउनी' २ रे भागके, डबल्यु. एच. लो. एम. ए. कृत भंप्रेजी अनुवादके २६५ वें पृष्ठमें देखें। .
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org