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________________ सूरीश्वर और सम्राट्। सहसा मकानके गिरनेकी आशंका नहीं रहती । इसी तरहसे मनुष्य-जीवनकी निर्भयताके लिए मनुष्य मात्रको चाहिए कि वह देव, गुरु और धर्मको-उनकी परीक्षा करके-स्वीकार करे । कारण-प्रकृतिका नियम है कि, मनुष्य यदि गुणीकी सेवासहवास करता है तो वह गुणी बनता है और यदि निर्गुणीका सेवासहवास करता है तो वह निर्गुणी बनता है । इसलिए देव, गुरु और धर्मकी जाँच करके ही उन्हें ग्रहण करना हितावह होता है। "संसार में आज जितने मतमतान्तरों और दर्शनों के झगड़ें दिखाई दे रहे हैं, वे सारे ईश्वरको लेकरही हो रहे हैं । यद्यपि ईश्वरको माननेसे कोई इन्कार नहीं करता है तथापि नाम-भेदसे और उसके स्वरूपको भिन्न भिन्न प्रकारसे माननेके कारण, झगड़े खड़े हुए हैं । देव, महादेव, शंकर, शिव, विश्वनाथ, हरि, ब्रह्मा, क्षीणाष्टकर्मा, परमेष्ठी, स्वयंभू, .जिन, पारगत, त्रिकालविद्, अधीश्वर, शंमु, भगवान, जगत्प्रभु, तीर्थकर, जिनेश्वर, स्याद्वादी, अभयद, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, केवली, पुरुषोत्तम, अशरीरी और वीतराग आदि अनेक ईश्वरके नाम हैं। ये सारे ही .नाम गुणनिष्पन्न हैं । इन नामोंके अर्थमें किसी को विवाद नहीं है। मगर सिर्फ नाममें विवाद है। देव-महादेव-ईश्वरका संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है। ___ " जिसमें क्लेश उत्पन्न करनेवाला ' राग ' नहीं है; शान्तिरूपी काष्ठको जलानेवाली अग्निके समान ' द्वेष ' नहीं है; शुद्ध-सम्यग्ज्ञानको नाश करनेवाला और अशुभ आचरणोंको बढ़ानेवाला ' मोह' नहीं है और तीनलोकमें जो महिमामय है वही महादेव है; जो सर्वज्ञ है, शाश्वत सुखका भोक्ता है और जिसने सब तरहके ' कर्मों , को क्षय करके मुक्ति पाई है तथा परमात्मपदको प्राप्त किया है वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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