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________________ प्रतिबोध। सरिजीके इस उत्तरसे बादशाहके अन्तःकरण पर सूरिजीकी कर्तव्यनिष्ठताका असाधारण प्रभाव पड़ा। इस विषयमें फिरसे बादशाह सूरिजीको कुछ न कह सका । मगर उसने थानसिंहको कहाः "थानसिंह ! तुझे चाहिए था कि तू मुझे सूरिजीके इस कठोर आचारके संबंधों पहिलेहीसे परिचित कर देता । यदि मुझे पहिले मालूम हो जाता तो मैं सूरिजीको इतना कष्ट न देता ।" थानसिंह टगर टगर बादशाहकी ओर देखता रहा । उसे न सूझा कि, वह क्या उत्तर दे ? उसको मौन देखकर बादशाहने स्वयंही कहाः “ठीक ठीक ! थानसिंह ! मैं तेरी बनियाबुद्धि समझ गया। तूने अपना मतलब साधनेहीके लिए मुझको सब बातोंसे अज्ञात रक्खा था । सूरिजी महाराज पहिले कभी इस देशमें आये न थे, इसी लिए उनकी सेवा-भक्तिका लाभ उठानेके लिए तू मेरी बातोंको पुष्ट करता रहा । मुझे यह न समझाया की सूरिजी को यहाँ बुलाने में कितनी कठिनता है। ठीक है ऐसे महा पुरुषकी भक्तिका लाभ मुझे और तेरे जातिभाइयोंको मिले तो इससे बढ़कर और क्या सौभाग्यकी बात हो सकती है ! " ___ बादशाहकी इस मधुर और हास्ययुक्त वाणीसे दोनों मंडलमुनिमंडल और राजमंडल-आनंदित हुए। उसी समय बादशाहने उन दोनों मनुष्योंकों-मुइनुद्दीन ( मौंदी ) और कमालुद्दीन (कमाल) को बुलाया, जो कि बादशाहका आमंत्रण पत्र लेकर सूरिजीके पास गये थे। उनसे अकबरने, ' सूरिनीको रस्तेमें कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई थी ? ' ' वे मार्ग में कैसे चलते थे' आदि बातें पूछी और इनका उत्तर सुनकर बादशाहको बहुत आनंद हुआ। उसने सूरिजीके उत्कृष्ट आचारकी अन्तःकरणपूर्वक प्रशंसा की और उसके बाद पूछा: 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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