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________________ सूरीश्वर और सम्राट्। जगमालकच्छवाहे के यहाँसे रवाना हो कर पहिले अबुल्फ़ज़ल के घर की तरफ चले । जब वे सिंहद्वार नामक मुख्य दर्वाजे पर पहुंचे तब थानसिंह आदि श्रावकोंने अबुल्फजलके पास जाकर कहा कि सूरिजी 'सिंहद्वार ' पर आये हैं। साथही उन्होंने यह भी जतलादिया कि वे इसी समय बादशाहसे मिलना चाहते हैं। अबुल्फजलने कोई उत्तर नहीं दिया। वह चुपचाप बादशाहके पास चला गया और बोला:---." हीरविजयमूरिजी सिंहद्वार तक आगये हैं। यदि आज्ञा हो तो उन्हें आपके पास ले आऊँ। वे इसी समय आपसे मिलना चाहते हैं।" बादशाहने उत्तर दिया:-" जिनको मिलनेके लिए मैं आतुर हो रहा था उनके पधारनेके समाचार सुन कर मुझे बहुत ज्यादा आनंद हो रहा है। मगर खेद है कि, मैं उनसे इसी समय नहीं मिल सकता । मेरा मन इस समय किसी दूसरे कार्यमें लग रहा है। मैं महलमें जाता हूँ । वहाँसे वापिस आऊँ तब तुम सूरिजीको ले आना । इस समय सूरिजीको अपने यहाँ लेजाओ और उनके चरणकमलसे अपना घर पवित्र करो।" बादशाहका यह उत्तर हरेक सहृदयको बुरा लगेगा। जिनको सैकड़ों कोसोंकी मुसाफिरी कराकर अपने पास बुलाया था, जिनसे मिलनेके लिए चातककी तरह व्याकुल हो रहा था वे ही जब फतेहपुरमें आ जाते हैं, फतेहपुर ही क्यों, मिलनेके लिए सिंहद्वार तक आ पहुँचते हैं और मिलनेके लिए पुछवाते हैं तो उत्तर मिलता है कि, 'मैं अभी कार्यमें व्यग्र हूँ; थोड़ी देरके बाद मिलूंगा। इसका अर्थ क्या होता है ? ऐसा उत्तर बादशाहके किस दुर्गुणका परिणाम था सो खोज निकालना असंभव नहीं तो भी कष्टसाध्य अवश्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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