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सूरीश्वर और सम्राट्।
वडली में अपने गुरु श्रीविजयदानसूरिके स्तूप ( पादुका ) की वंदना कर सिद्धपुर गये। श्रीविजयसेनसूरि यहाँसे वापिस पाटन गये । कारण-संवकी-पाधुओंकी संभाल रखनेके लिए उनका गुजरातहीमें रहना स्थिर हुआ था । सिद्धपुरसे आबूकी यात्राके लिए विहार करते हुए सूरिजी सरोत्तर ( सरोत्रा ) हो कर रोह पधारे । यहाँ सहस्रा. र्जुन नामक भीलोंका सर्दार रहता था । उसने और उसकी आठ स्त्रियोंने सूरिजीकी साधुवृत्तिसे प्रसन्न हो कर इनका उपदेश सुना । उपदेश सुन कर उसने किसी भी निरपराध जीवको नहीं मारनेका नियम ग्रहण किया । फिर वहाँसे सूरिजी आबूकी यात्राके लिए आबू गये । आबूके मंदिरोंकी कारीगरी देख कर आपको बड़ी भारी प्रसनता हुई । वहाँसे सीरोही पधारे । सीरोहीके राजा सुरत्राण (देवड़ा सुल्तान ) ने सूरिजीका अच्छा सत्कार किया । इतना ही नहीं उसने सृरिजीके उपदेशसे चार बातोंका-शिकार, मांसाहार, मदिरापान और परस्त्री सेक्नका-त्याग कर दिया । सरिजी वहाँसे सादड़ी होकर राणकपुरकी यात्राके लिए गये । वहाँके मंदिरकी विशालता कोजो भूमंडल पर अद्वितीयताका उपभोग कर रही है-देख कर सूरिजीको बहुत आनंद हुआ । यहाँसे वे वापिस सादड़ी आये । सूरिजीके दर्शनार्थ वाडसे चल कर आये हुए श्रीकल्याणविजयजी उपाध्याय भी सूरजीको रहीं मिले । वे आउआ तक साथ रह कर वापिस लौटे । आउआके स्वामी वणिक् गृहस्थ ताल्हाने सूरिजीके आगमनकी खुशीमें उत्सव किया। और · पिरोजिका ' नामका सिक्का भेटस्वरूप हरेक मनुष्यको दिया । सरिजी वहाँसे मेडता गये। मेडतामें दो दिन तक रहे । यहाँके राजा सादिय सुल्तानने भी आपकी अच्छी खातिरदारी की। सास्त भारत पर जिसका एकछत्र साम्राज्य था उस अकवरने ही जब सूरिजीको बड़े सत्कारके साथ बुलाया था तो फिर ऐसे महत्वशाली
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