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________________ आमंत्रण। ApARNARA AAAAAAAA RAUNMUNAL naamanamanna कइयोंने कहा:-" सूरिजी महाराजको हम लोग क्या वहाँ भेज सकते हैं ? वह तो महा म्लेच्छ है, न जाने क्या करे ? वहाँ जा कर लेना क्या है ? " किसीने कहा:-" अकबर ऐसा वैसा आदमी नहीं है। लोगोंको जब उसके नामसे ही दस्त लग जाते हैं तब उसके पास तो जा ही कौन सकता है ? " किसीने कहा:-" वह तो खासा राक्षसका अवतार है। मनुष्योंको मार डालना तो उसके लिए एक एकन एक ' के समान है। ऐसे दुष्ट बादशाहके पास जानेसे मतलब ?" इस तरह विवाद करते हुए कई उसकी ऋद्धि समृद्धि का हिसाब करने लगे और कई उसकी लड़ाइयोंकी गिनती करने बैठे। सूरिजी चुपचाप मौन धारण कर इनकी बातें सुन रहे थे । कइयोंने यह भी कहा कि" यद्यपि बादशाह बहुत क्रूर है तथापि उसमें यह गुण बड़ा भारी है कि, वह गुणियोंका आदर करता है। यह यदि किसीमें महत्त्वका गुण देखता है तो उस पर प्रसन्न हो जाता है । इस लिए वह तो सूरिजीके समान महात्माको देखते ही ल हो जायगा । " कइयोंने कहा:---" हमें ऐसे संकुचित विचार नहीं रखने चाहिए, जब राजा उन्हें ऐसे सम्मानके साथ बुला रहा है तो महारानको अवश्य जाना ही चाहिए। सूरीश्वर महारानके पधारनेसे शासनकी बहुत प्रभावना होगी।" किसीने कहा:-"डरनेका कोई सबब नहीं है। अकबरके सोलह सौ तो स्त्रियाँ हैं । वह तो उन्हीं में अपना दिन बिताता है । वह स्त्रि-सहवास और एशोइशरतसे छुटी पायगा तब तो सूरिजी महाराजसे मिलेगा न ?” इतनेमें एक बोल उठा:-"जव बादशाह मिलेहीगा नहीं तो फिर जानेकी जरूरत ही क्या है ?" इस तरह श्रावकोंके आपसमें जो विवाद हुआ उसको सूरीश्वरजीने शान्तिके साथ सुना और फिर शासनसेवाकी भावनापूर्ण हृदयके साथ गंभीर स्वरमें कहा: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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