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________________ आमंत्रण। m कम १०-१२ दिन पहिले तो वह किसी तरहसे भी नहीं भेज सकता था। इस समय १०-१२ दिनकी बात तो दूर रही मगर १०-१२ घंटोकी भी जरूरत नहीं पड़ती है। अब तो १०-१२ मिनिट ही काफीसे ज्यादा हो जाते हैं। जिन समाचारोंको भेननेके लिए उस समय सैकड़ों रुपये खर्चने पड़ते थे वे समाचार अब केवल बारह आनेमें पहुंचा दिये जाते हैं। अभी जमानेको आगे बढ़ने दो, भारतमें साधनोंके बाहुल्य होने दो, फिर देखना कि, ये ही समाचार सेकंडोमें पहुंचने लगेंगे। पाठक ! कहो अकबर सम्राट् था, सम्राट ही क्यों उस समय चक्रवर्तीके समान था तो भी आजसे साधन उसके भाग्यमें थे ? नहीं, नहीं थे;बिलकुल नहीं थे। कमसे कम कहें तो भी आठ दस दिन तक रस्तेकी धूल फाक फाक कर ऊँट और घोड़ोंके साथ ही मनुष्यों की भी पूरी गति बन जाती तब कहीं जा कर एक समाचार आगरेसे गुजरातमें पहुँचता । अकबरकी प्रबल इच्छा थी कि, उसका आमंत्रण तत्काल ही हीरविजयसूरीके पास पहुँच जाय, मगर उसकी इच्छासे. क्या हो सकता था ? मनुष्य जातिसे जितना हो सकता है उतना ही तो वह कर सकती है ! तो भी अकवर और थानसिंह आदि श्रावकोंके पत्र ले, लंबी लंबी मंजिलें तै कर मेवड़ोंने जितनी शीघ्रता उनसे हो सकती थी उतनी शीघ्रतासे अहमदाबादमें शहाबखाँके पास दोनों पत्र पहुँचाये । शहाबखाँने सम्राट्का पत्र हाथमे ले कर भक्ति पूर्वक सिर पर चढ़ाया और पत्रको पढ़नेसे पहिले सम्राट्की, उसके तीन पुत्रोंकी -शेखूजी, पहाड़ी और दानियालकी-और सारे शाही कबीलेकी सुख-शान्तिका हाल दर्याफ्त कर लिया फिर उसने बादशाहका सुनहरी फर्मान बड़े ध्यानके साथ पढ़ा । उसमें लिखा था, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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