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________________ વર सूरीश्वर और सम्राट् । चंपा को बड़े आदर के साथ अपने महल में बुलाया और नम्रतासे पूछा - " माता ! आपने कितने उपवास किये और कैसे किये ? " चंपाने उत्तर दिया:--" पृथ्वीनाथ ! मैंने छः महीने तक अनाज बिलकुल नहीं खाया। सिर्फ जब कभी बहुत ज्यादा प्यास मालूम देती, तब दिनके वक्त थोड़ासा गर्म पानी पी लेती थी । इस तरह आज मेरा छःमासी तप पूरा हुआ है । " बादशाहने साध्धर्य पूछा:- “ तुम इतने उपवास कैसे कर सकीं ? " चंपाने दृढ श्रद्धा के साथ कहा :- "मैं अपने गुरु हीरविजयसूरिके प्रतापहीसे इतने उपवास कर सकी हूँ। " यद्यपि बादशाह मंगल चौधरी और कमरुखाँकी जबानी पहिले ये बातें सुन चुका था तथापि कुदरत के नियमानुसार उसने स्वयमेव चंपासे फिर भी पूछ लिया । प्रकृतिका नियम है कि, किसी आदमीके विषय में दूसरोंके द्वारा जो कुछ सुना जाता है उससे जो आनंद - जो सहानुभूति उत्पन्न होती है वह उस आदमी से जब साक्षात् भेट होती है तब उसकी जवानी उसका हाल सुन कर कई गुनी ज्यादा बढ़ जाती है। इसी लिए बादशाहने उससे फिर भी पूछ लिया | चंपाकी बातें सुन कर बादशाहको सन्तोष हुआ । उसने पूछा:-- “ हीरविजयसूरि इस समय किस जगह हैं ? " चंपाने उत्तर दिया:- " वे इस वक्त गुजरात प्रान्तके गंधार शहर में हैं। " चंपाकी बातों से बादशाहको बहुत खुशी हुई । उसने पूर्व निश्चयानुसार फिरसे निश्चित किया कि, हर तरहसे हीरविजयसूरिको यहाँ बुलाऊँगा । 'हीरविजयसूरि रास ' के लेखक कवि ऋषभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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