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________________ सम्राट-परिचय. अक्षर ज्ञानके बजाय पक्षी ज्ञान दिया था। यह बात ऊपर कही जा चुकी है । इसीलिए, कहा जाता है कि, अकबरने अपनी बाल्यावस्था २०००० कबूतर रक्खे थे और उनके दस वर्ग किये थे। इस भाँति अकवरके मस्तक पर बाल्यावस्थाहीसे खेलके संस्कार पड़े थे। जैसे जैसे उसकी आयु बढ़ती गई वैसे ही वैसे उस पर कई खराब व्यसन भी अपना प्रभाव जमाते गये थे। सबसे पहिले तो उसमें मदिराका व्यसन असाधारण था । इस शराबके व्यसनसे कई वार वह अपने खास खास कामोंको भी भूल जाता था और जब नशा उतर जाता तब भी बड़ी कठिनतासे उन्हें याद कर सकता था । इस व्यसनके कारण कई बार तो उससे ऐसा भी अविवेक हो जाता था कि, चाहे कैसे ही ऊँची श्रेणीके मनुष्यको उसने बुलाया होता, वह आया होता और उसके (अकबरके) मनमें उस समय मदिरा पीनेकी याद आ जाती तो वह उससे नही मिलता । इस अकेली मदिराहीसे वह सन्तुष्ट नहीं था । अफीम और पोस्त पीनेका भी उसे बहुत ज्यादा व्यसन था। कई वार धर्माचार्योसे बात करता हुआ भी ऊँघने लग जाता था। इसका कारण उसका व्यसन ही था। उसमें एक बहुत ही खराब आदत यह भी थी कि, वह लोगोंको आपसमें लड़ा कर मजा देखता था । अपने मंजेके लिए मनुष्य मनुष्यको पशुओंकी तरह आपसमें लड़ाना, राजाके लिए सद्गुण नहीं है । इसके सिवा निस बहुत बड़े व्यसनसे कई राजा लोग दूषित गिने जाते हैं; यानी जो व्यसन राजा ओंके जातीय जीवन पर एक कलंक रूप समझा जाता है वह शिकारका व्यसन भी उसे बहुत ही ज्यादा था। चीतोंसे हरिणोंका शिकार करानेमें उसे अत्यन्त खुशी होती थी। वह समय समय पर शिकारके लिए बाहिर जाया करता था । अपने शिकारके शौकको पूरा करनेमें उसने लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ों प्राणियोंकी जाने ली थीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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