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सूरीश्वर और सम्राट् । " किलेके सिंहद्वारके दोनों तरफ पत्थरके बड़े बड़े दो हाथी हैं, उन्हें छोड़कर दूसरी कोई चीज़ यहाँ उल्लेख करने योग्य नहीं है । एक हाथी पर चित्तौड़के सुप्रसिद्ध वीर जयमलकी मूर्ति है और दूसरे पर उसके भाई पताकी। इन दोनों वीरोंने तथा इनसे भी विशेष साहस दिखानेवाली इनकी माताओंने विख्यात अकबरको रोक कर अविनाशी कीर्ति उत्पन्न की थी। उन्होंने अकबरसे घेरे हुए नगरकी रक्षा करना और अन्तमें, उद्धतापूर्वक आक्रमण करनेवालोंसे हार कर पीठ देनेकी अपेक्षा शत्रु पर आक्रमण करके प्राण त्याग करना विशेष उचित समझा था। इन्होंने इस तरह आश्चर्यकारक वीरताके साथ जीवन त्याग किया, इससे उनके शत्रुओंने उनकी मूर्तियाँ स्थापन कर उन्हें चिरस्मरणीय बना दिया । ये दोनों हाथियोंकी मूर्तियाँ और उन पर स्थापित दो वीरोंकी मूर्तियाँ अत्यन्त महिमा युक्त, अवर्णनीय सम्मान और भीति उत्पन्न करती हैं। * "
इससे यह प्रमाणित होता है कि, अकबरने दोनों वीर पुरुषोंकी मूर्तियाँ हाथी पर बैठाई थीं । वास्तवमें अकबरने अपनी इस कृतिसे'रजब साँचे शूरके वैरी करें बखान ' इस कहावतको चरितार्थ कर दिखाई थी। यद्यपि लोगोंका कथन है कि, अकबरने चित्तौड़की लड़ाईमें इतनी ज्यादा क्रूरता की थी कि उसके कारण वह दूसरा अलाउद्दीन खूनी या दूसरा शाहाबुद्दीन समझा जाने लगा था। इसलिए अपने इस कलंकको मिटानेकी गरजसे अर्थात् लोगोंको सन्तुष्ट करनेके अभिप्रायसे उसने जयमल और पताके पुतले बनवाये थे, तथापि हम इस कथनसे सहमत नहीं हैं। लोगोंको सन्तुष्ट करनेके इससे भी अच्छे दूसरे मार्ग थे । मगर उन पर न चल कर पुतले ही बनवाये
* देखो, बनिअरके भ्रमणवृत्तान्तका बँगला अनुवाद सिमसामयिक भारत ११ वाँ खंड पृ० ३०४.
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