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________________ सम्राट्-परिचय। amannaaaaaaaam गुण पर मुग्ध हो कर वह उसका नाम अमर करनेके लिए यथासाध्य प्रयत्न करता था। उसका यहाँ हम एक उदाहरण देगें। ... __ अकबरने जब चितौड़ पर चढ़ाई की और रानाके साथ तुमुल युद्ध हुआ, तब उसमें रानाके जयमल और पत्ता नामक दो वीरोंने, असाधारण वीरताका परिचय दिया। उनकी वीरतासे अकबरको इतना भय हुआ कि, उसे अपनी जीतमें भी शंका हो गई। अकबरने क्रूरता की। उससे जयमल और पत्ता मारे गये । यद्यपि अकबरने उनके प्राण लिए तथापि वह उनकी असाधारण वीरताके गुणको न भूला । उसने आगरेमें जा कर उन दोनोंकी पत्थरकी मूर्तियाँ आगरेके किलेमें खड़ी करवाई । और अपनी कृतिसे लोगोंको यह बताया कि,वीर पुरुष यद्यपि देह त्याग कर चले जाते हैं। मगर उनका यशःशरीर हमेशा स्थिर रहता है; और साथ ही यह भी बताया कि, शत्रुके गुणोंकी भी इस भाँति कदर की जाती है। अकवरहीके समयके श्रावक कवि ऋषभदासने अकवरकी मृत्युके चौबीस बरस बाद 'हीरविजयसूरि रास' नामका गुजरातीमें एक ग्रंथ लिखा है। उसके ८० वें पृष्ठमें वह लिखता है:-- जयमल पताना गुण मन धरे, बे हाथी पत्थरना करे, जयमल पता बेसार्या त्यांहि, ऐसा शूर नहीं जग मांहि । ___ अकबरने ये दोनों पुतले आगरेके किलेके सिंहद्वारके दोनों तरफ खड़े करवाये थे। मगर पीछेसे उसके लड़के शाहजहाँने, जब दिल्ली बसा कर उसका नाम शाहजहाँबाद रक्खा तब, उन जयमल और पताके पुतलोंको उठवा कर इस शाहजहाँबादके सिंहद्वारके दोनों और खड़े किये । इन दोनों पुतलोंको देख कर फ्रान्सिस बनियरने-जो १६५५ से १६६७ तक भारतमें रहा था-अपने भ्रमणवृत्तान्तमें लिखा है कि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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