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________________ १६ अ मंदिर बनवाया था, उसका प्रतिष्ठा महोत्सव आपने मुंबई सें संघ ले जाकर बड़ी धूमधामसे कियाथा. और रु. १२ हजार खरच कर दक्षिण में बारसी नगरमें एक जैन मंदिर बनवाया है. संवत १९४९ में ब्राह्मणोंको भोजन कराने न करानेके विषयमें इनकी ज्ञातिमें दो पक्ष पडगयेथे, उस समय शेठ वसननी पुरानी रीति भांति और प्रणाली अच्छी समझकर ज्ञाति शेठ नरसीनाथाके पक्षमें रहे थे. दोनों पक्षके इसमें लाखों रुपये व्यय हो गये. इस बातको बहुत बुरी समझके इस रगडेको मिटानेके लिये आप ऐसा उद्यम करने लगे कि दूसरे पक्षके समझदार पुरुष भी इनकी प्रशंसा कर रहे हैं. अब झगडा मिट गया. संवत १९५२ में अपनी ज्येष्ट पुत्रीका लग्न इन्हाने बडी धुमधामसें किया. उसी साळमें इतनी छोटी उमरमें इनके शुभ गुणों और परोपकार वृत्तीको देखकर ब्रिटिश सरकारने इनको जस्टीस आफ धी पीस (J. P.) की सुप्रतिष्टित उपाधि दी. इनकी सादगीकी जितनी प्रशंसा की जाय इतनी थोड़ी है. यात्रासें वापस आनेपर मानपत्र देनेकी तयारी देखकर इन्होंने यही कहा कि, जो पैसा आप इस कार्यमें लगावै, वो कोई अच्छा कार्यमें लगावें तो उचित है. जनहितमें सुवृत्तिको प्रवर्त करना मनुष्यमात्रका कर्तव्य है. __ अपने ज्ञातिभाई ओंका श्रेय करनेके लिये यह सदा तत्पर रहते हैं. सुना जाता है कि, इनका विचार एक जैन सेनिटेरियम ( आरोग्य भवन ) बनानेका है. संवत १९५२ में जब हिंदुस्थानभरमें दुर्भिक्ष पडा था, तब इन परोपकारी शेठने दुकालके चंदोंमें अच्छी सहायता दी, इतनाही नहीं बरन गरीबोंको सस्ते भावसें अनाज बेचनेके लिये, आपने दुकानें खोल दी; और खरीद भावसें भी बहुत कम दामोमें अनाज बिकवाते रहै. इसी साल में जब बंबई में प्लेगका प्रकोप भयंकर रुपसें फैला हुआ था, लोगोंमें भागाभूगी तथा धरपकड हो रही थी और सरकारी “ प्लेग कमिटी" बीमारोंको सरकारी होस्पीटलमें लेजा रहीथी, उस समय आपने ज्ञातिबंधुओंको ऐसी दुःखी हालतमें देखकर अपने खरचसे ता. २७ मारच १८९७ को एक “कच्छी दशा ओसवाल जैन हास्पीटल" स्थापन की जिससे रोगी सरकारी होस्पीटलमें जानेके बदले अपनी ज्ञाति होस्पीटलमें जाने लगे जहांपर बहुतसे आरोग्य होगये, और शेठ बसनजीको धन्यवाद देने लगे. धनका सदुपयोग ऐसेंही सत्कायमें करना उचित है. होस्पीटलका प्रबंध ऐसा उमदा रहा कि, प्लेग कमिटी और समाचार पत्रोंने बड़ी प्रशंसा की थी. अनुमान ६००० रुपये इन्होंने निजके खरच किये. कच्छ मांडवीकी प्लेगमें और सेंकडों फंडोमें आपने अच्छा चंदा दिया और प्रत्येक अच्छे कार्यमें सहायक होना आप अपना कर्त्तव्य समझते हैं. विद्यावृद्धिके प्रत्येक कायमें शेठ वसनजी मदद देते ह. "साक्षर साहायक-प्रजाबोधक मंडली" के यह पेट्रोन है. और गरीब विद्यार्थीयोंको, स्कुल फी व दूसरी मदद देते रहते हैं. शेठ वसनजी “शेठ तापीदास वरजदास मिल" के डीरेक्टर है और हरेक सार्वजनिक कार्यमें आप प्रसन्नतासें शामिल होते हैं. इनकी उदार वृत्तीसें प्रसन्न होकर ब्रिटिश सरकारने इनको रावसाहेबकी उपाधि प्रदान की. सहायताके सिवाय इस ग्रंथकी १२५ प्रति इन्होंने मुनिराज और पुस्तकालय आदिको भेट देनेके लिये खरीदी हैं. हम शेठ बसनजीकी दीर्घ आयु चाहते हैं और देशहित, धर्महित और ज्ञातिहितके और भी अच्छे कार्य आप सदा करते रहैं, यही हमारी अभिलाषा है. तथास्तु !! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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