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त्रिंशः स्तम्भः ।
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भाषार्थः - नानास्वभावसंयुक्त द्रव्यको प्रमाणसें जानके, तिस द्रव्यंको सापेक्ष स्वद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षा अस्तिरूप, परद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षा नास्तिरूप, इत्यादि सिद्धिके वास्ते ' स्यात् ' शब्द और ' नय ' इनसें मिश्रित करो. ॥
इस नय मतद्वारा स्वभावोंका अधिगम संक्षेपमात्रसें द्रव्यों में दिखाते हैं.
द्रव्यका जो अस्तिस्वभाव है, सो, स्वद्रव्यादिचतुष्टय के ग्रहणसें, द्रव्या र्थिक नयके मतसें, जानना । १ ।
परद्रव्यादिचतुष्टयके ग्रहणसें, द्रव्यार्थिक नयके मतसें, नास्तिस्वभाव
है. । २ ।
उक्तंच ॥
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॥ सर्वमस्तिस्वरूपेण पररूपेण नास्ति च ॥ " उत्पादव्ययकी गौणताकरके सत्तामात्रके ग्रहणसें, द्रव्यार्थिकनयके मतसें, नित्यस्वभाव है. । ३ ।
उत्पादव्ययकी मुख्यतासें; और सत्ताकी गौणतासें, ऐसें पर्यायार्थिक नयके मतसें अनित्यस्वभाव है. ।४ ।
भेदकल्पनाकी निरपेक्षतासें, शुद्धद्रव्यार्थिकनयके मतसें, एक स्वभाव है. । ५ ।
अन्वयव्यार्थिकसें, अनेकस्वभाव है. कालान्वयमें सत्ताग्राहक, और देशान्वयमें अन्वयग्राहक नय, प्रवर्त्तता है. । ६ ।
सद्भुतव्यवहारनयसें, गुणगुणी, पर्यायपर्यायीका भेदस्वभाव है. । ७ । गुणगुण्यादिभेदनिरपेक्षतासें, शुद्धद्रव्यार्थिकनयके मतसें, अभेदः स्वभाव है. । ८ ।
परमभावग्राहकनयके मतसें, भव्य, अभव्य, स्वभाव जानने, भव्यता, सो स्वभावनिरूपित है; और अभव्यता, सो उत्पन्नस्वभावकी तथा परभाबकी साधारण है; इसवास्ते यहां अस्तिनास्तिस्वभावकीतरें स्वपरद्रव्यादिग्राहकनयों की प्रवृत्ति, नही होसकती है. । ९ । १० ।
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