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________________ तत्त्वनिर्णयप्रासाद आत्मा है; अन्यलक्षणवाला नही. यादि इन पूर्वोक्त बातोंमेंसें एक बात भी, न माने तो, सर्व शाळा, झूठे ठहरेंगे, और शास्त्रोंके कथन करनेवाले अज्ञानी सिद्ध होवेंगे. तथा पूर्वोक्त आत्मा पुण्यपापकेसाथ प्रवाहसें अनादिसंबंधवाला है, जेकर आत्माकेसाथ पुण्यपापका प्रवाहसे अनादिसंबंध, न माने, तब तो, बहुत दूषण मतधारीयोंके मतमें आते हैं; वे येह हैं. जेकर आत्माको पहिला माने, और पुण्यपापकी उत्पत्ति आत्मामें पीछे माने, तब तो, पुण्यपापसे रहित निर्मल आत्मा प्रथम सिद्ध हुआ. (१) निर्मल आत्मा संसारमें उत्पन्न नही होसकता है. (२) विनाकरे पुण्यपापका फल भोगना असंभव है. (३) जेकर विनाकरे पुण्यपापका फल भोगनेमें आवे, तब तो, सिद्ध मुक्तरूप परमात्मा भी पुण्यपापका फल भोगेंगे. (४) करेका नाश, और विनाकरेका आगमन, यह दूषण होवेगा. (५) निर्मल आत्माके शरीर उत्पन्न नहीं होगा. (६) जेकर विनापुण्यपापके करे ईश्वर जीवको अच्छी बुरी शरीरादिककी सामग्री देवेगा, तब तो, ईश्वर अज्ञानी, अन्यायी, पूर्वापरविचाररहित, निर्दयी, पक्षपाती, इत्यादि दूषणोंसहित सिद्ध होवेगा; तब ईश्वर काहे. का ? (७) इत्यादि अनेक दूषणोंके होनेसें प्रथम पक्ष असिद्ध है. ॥१॥ अथ दूसरा पक्षः-कर्म पहिले उत्पन्न हुए, और जीव पीछे बना, यह भी पक्ष मिथ्या है. क्योंकि, प्रथम तो जीवका उपादानकारण कोई नही. (१) अरूपी वस्तुके बनाने में कर्त्ताका व्यापार नही. (२) जीवने कर्म करे नही, इसवास्ते जीवको फल न होना चाहिये. (३) जीवकर्ताके विना कर्म उत्पन्न नही होसकते हैं ( ४ ) जेकर कर्म ईश्वरने करे हैं, तब तो, उनका फल भी ईश्वरको भोगना चाहिये (५) जब कर्मका फल भोगेगा, तब ईश्वर नहीं (६) जेकर ईश्वर कर्मकरके अन्य जीवोंको लगावेगा तब तो ईश्वर निर्दयी, अन्यायी, पक्षपाती, अज्ञानी, इत्यादि दूषणयुक्त सिद्ध होवेगा (७) तथाहि-जब बुरे कर्म जीवके विनाकरे जीवको लगाए, तव जो जो नरकगतिके दुःख, तिर्यंचगतिके दुःख, दुर्भग, दुःस्वर, अयशः, अकीर्ति, अनादेय, दुःख, रोग, सोग, धनहीन, भूख, प्यास, शीत, उष्णा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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