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________________ चतुस्त्रिंशः स्तम्भः । ६३५ विशेष ५, कोलादिक ६, नरवाहीनिका ७, इत्यादि अनेक प्रकारके हैं. ॥ ४ ॥ । ५. शिल्पार्य - इनके भी अनेक प्रकार हैं । दरजी का काम करनेवाले?, तंतुवायाकुविंदा २ पटकारा पट्टकूलकुविंदा ३, वृतिकारा ४, विच्छिका ५, जविका ६, कठादिकारा ७, काष्टपादुकाकारा ८, छत्रकारा ९, बभारा १०, पप्भारा ११, पोत्थारा १२, लेप्पारा १३, चित्तारा १४, संखारा १५, दंतारा १६, भंडारा १७, जिभागारा १८, सेल्हारा १९, कोडिगारा २०, इत्यादि अनेक प्रकारके शिल्पार्य जानने ॥ ५ ॥ ६. भाषार्य - जहां अर्द्धमागधी भाषाकरी बोलते हैं, और जहां ब्राह्मी लिपिके अठारह (१८) भेद प्रवर्त्ते हैं, अर्थात् लिखते हैं, सो भाषार्य. । ब्राह्मी लिपिके भेद ऊपर लिख आए हैं, और अठारह देशकी भाषा एकत्र मिली हुई बोली जाती है, सो अर्द्धमागधी भाषा, ऐसें निशीथ चूर्पिण में लिखा है. ॥ ६॥ ७. ज्ञानार्य - इनके पांच भेद हैं. मतिज्ञानार्य १, श्रुतज्ञानार्य २, अवधिज्ञानार्य ३, मनः पर्यवज्ञानार्य ४, केवलज्ञानार्य ५. इन पांचों ज्ञानोमेंसें जिसको ज्ञान होवे, सो ज्ञानार्य. इन पांचों ज्ञानोंका स्वरूप नंदिसूत्रसें जान लेना ॥ ७ ॥ ८. दर्शनार्य - इनके दो भेद हैं. सरागदर्शनार्य १, वीतरागदर्शनार्य २: सरागदर्शनार्य, कारणभेद होनेसें कार्यभेद नयके मतसें दश प्रकारके हैं. । निसर्गरुचि १, उपदेशरुचि २, आज्ञारुचि ३, सूत्ररुचि ४, वीजरुचि ५, अभिगमरुचि ६, विस्ताररुचि ७, क्रियारुचि ८, संक्षेपरुचि ९, धर्मरुचि १०. । इनका स्वरूप ऐसे है । भूतार्थत्वेन सद्भूता सच्चे हैं येह पदार्थ, ऐसें रूपसें जिसने जीव १, अजीव २, पुण्य २, पाप ४, आश्रव ५, संवर ६, बंध ७, निर्जरा ८, मोक्षरूप ९, नव पदार्थ* जाने हैं; कैसें जाने * श्रीमेवविजयजी उपाध्यायविरचित " तत्त्वगीत " में जीवका प्रतिपक्षी अजीत्र, पुण्यका पाप, आश्रका संवर, बंधका मोक्ष, और निर्जराकी प्रतिपक्षिणी वेदना, ऐसें दश पदार्थ लिखे हैं; और श्री भगवती सूत्रमें भी नवपदार्थों का वर्णन करके अनंतरही वेदनाका वर्णन किया है. ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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