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तत्त्वनिर्णयप्रासादकेवली कवलाहार क्यों नहीं करें ? क्योंकि, औदारिकशरीरकी स्थिति कवलाहारविना नही हो सकती है. ॥१॥ द्रव्यसंग्रहवृत्तिपाठो यथा ॥ “॥सयोगिकेवलिनो यथाख्यातं चारित्रं न तु परमयथाख्यातं चारित्रं चौराभावेपि चौरसंसर्गिवत् मोहोदयाभावेपि योगत्रयव्यापारश्चारित्रमलं जनयतीति ॥" भाषार्थ:-सयोगिकेवलीके यथाख्यात चारित्र है, परंतु परमयथाख्यात चारित्र नहीं है, जैसें चोरके अभावसे भी, चोरकी संगतिवाला चोर है; तैसेंही मोहोदयके अभाव हुए भी, योगत्रयका व्यापार चारित्रमें मल उत्पन्न करता है. ॥२॥ प्रवचनसारपाठो यथा ॥ ठाणनिसेज्जविहारा धम्मुवदेसो अणिअदवो तेसिं ॥
अरहंताणं काले मायाचारोवू इत्थीणं॥ - भाषार्थ:-स्थान, निषध्या, विहार, धर्मोपदेश, यह सर्व तिन अरिहंतोंको स्वाभाविक है. स्त्रियोंको मायाचारकीतरें. ॥३॥
उनिद्रहेम-इत्यादि भक्तामरके काव्यमें भगवान् कमलोपरि पाद न्यास, स्थापन करते हैं.
"पादौ पदानि तव यत्र जिनेंद्र धत्तः॥” ॥इति वचनात् ॥ ४॥ एकीभावस्तोत्रमें भी पादन्यास लिखा है.॥ "पादन्यासादपि च पुनतो यात्रया ते त्रिलोकीमित्यादि॥” ॥५॥ तीर्थंकरकमलऊपर पादन्यास करते हैं.॥ "तीर्थंकराःकमलोपरिपादौ न्यसंतीति" भावपाहुडवृत्तिवचनात्॥६॥ चंद्रप्रभचरित्रमें भगवान्का विहार लिखा है. ॥ ॥ इत्थं विहत्य भगवान् सकलां धरित्रीमित्यादिवचनात्॥॥७॥ भर्मानायचरित्रमें भी भगवानका विचरना लिखा हैः ॥
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